नयी दिल्ली, 28 मार्च (भाषा) सरकार ने संसद को सूचित किया है कि वर्तमान में वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
माकपा सदस्य वी शिवदासन के एक सवाल के लिखित जवाब में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्तवर्धन सिंह ने राज्यसभा को यह जानकारी दी।
मंत्री सिंह ने कहा,‘‘ मानव-वन्यजीव संघर्षों के प्रबंधन सहित वन्यजीवों का संरक्षण मुख्य रूप से संबंधित राज्य व केंद्रशासित प्रदेश सरकारों की जिम्मेदारी है।’’
उन्होंने कहा कि कानून की धारा 11 (1) (क) राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन को अनुसूची एक में आने वाले उन जानवरों के शिकार के लिए परमिट देने का अधिकार देती है, जो मानव जीवन के लिए खतरा बन जाते हैं। इसके अलावा, अधिनियम की धारा 11 (1) (ख) राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन या किसी भी प्राधिकृत अधिकारी को अनुसूची-दो के अंतर्गत आने वाले ऐसे जंगली जानवरों के शिकार के लिए परमिट देने का अधिकार देती है, जो जानवर मानव जीवन या संपति के लिए खतरा बन गए हैं।
माकपा सदस्य ने सवाल किया था कि क्या केंद्र सरकार जंगली जानवरों के हमलों से निपटने में राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने के लिए अधिनियम में संशोधन करने का इरादा रखती है? इसके जवाब में मंत्री ने कहा, ‘‘वर्तमान में वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में कोई संशोधन करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।’’
शिवदासन उच्च सदन में केरल का प्रतिनिधित्व करते हैं और केरल ने बार-बार केंद्र से राज्य में जंगली सूअरों को ‘पीड़क’ घोषित करने का अनुरोध किया है। केरल सरकार का कहना है कि जंगली सूअरों के कारण फसलों को नुकसान और मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है।
इसके जवाब में सिंह ने कहा, ‘‘मंत्रालय में केरल राज्य सरकार से राज्य में जंगली सूअर को पीड़क जन्तु घोषित करने का अनुरोध प्राप्त हुआ है। मंत्रालय ने केरल सरकार से वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 11 में निहित प्रावधानों का उपयोग करने पर विचार करने का अनुरोध किया है।’’
भाषा अविनाश माधव
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