New CJI Justice DY Chandrachud :नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के जज धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) देश के अगले मुख्य न्यायाधीश होंगे। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ 50वें मुख्य न्यायाधीश का कार्यभार ग्रहण करेंगे। मौजूदा मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने चीफ जस्टिस के रूप में डीवाई चंद्रचूड़ का नाम प्रस्तावित किया था। आज हम चंद्रचूड़ के बड़े फैसलेां पर नजर डालेंगे। जिन्होंने अविवाहित महिलाओं को गर्भपात, अयोध्या मंदिर के अलावा राइट टू प्राइवेसी जैसे अहम मुद्दों पर फैसला सुनाने में अपनी खास भूमिका निभाई थी। जाहिर है कि मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद उनकी नजर कई बड़ै फैसलों पर टिकी होगी।
भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ कहते हैं कि अदालतों का काम कानूनी जवाबदेही के साथ अत्याचार दूर करना है। उनके फैसले जितने मजबूत और तार्किक होते हैं, उतनी ही बेबाकी के साथ वे असहमति भी जताते हैं। कई फैसलों में पूरी पीठ से अलग राय रखते हुए वे असहमति को लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व करार देते हैं।
डीवाई चंद्रचूड़ के बड़े फैसलों की बात करें तो डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट का जज रहते कई बड़े फैसले सुनाने में अहम भूमिका निभाई, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं—
जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या मंदिर विवाद का फैसला करने वाली 5 जजों की बेंच का हिस्सा थे। तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल थे।
देश में अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का अधिकार देने के फैसले में भी उनकी भूमिका थी। फैसला सुनाने वाली बेंच की अध्यक्षता जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने की थी। फैसले में कहा गया कि विवाहित और अविवाहित सभी महिलाओं को कानूनी तरीके से 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने का अधिकार है।
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए कहा था कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा। पांच जजों की जिस बेंच ने ये फैसला सुनाया था, उसमें जस्टिस चंद्रचूड़ भी शामिल थे।
सबरीमाला मामले में फैसला देते हुए कहा था कि रिवाजों के संरक्षण और उनके इस्तेमाल ने संविधान की सर्वोच्चता छीन ली है। हाल ही में संविधान पीठ का हिस्सा रहते हुए उन्होंने पीठ से अलग राय रखते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय को सार्वजनिक प्राधिकरण बताते हुए इसे सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत उत्तरदायी बताया था। उनकी इस राय के आधार पर ही अदालत में आरटीआई आवेदनों से निपटने के लिए एक ऑनलाइन मंच स्थापित करने की घोषणा की गई।
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11 नवंबर, 1959 को जन्मे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की मां प्रभा चंद्रचूड़ शास्त्रीय संगीतकार थीं। उनकी स्कूली शिक्षा मुंबई और दिल्ली में हुई। उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद 1982 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी की। यहां से वे अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पहुंचे, जहां पहले एलएलएम पूरी की और 1986 में जूरिडिकल साइंसेस में पीएचडी की उपाधि हासिल की।
बता दें कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो साल का होगा। चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 को रिटायर हो सकते हैं। बता दें कि मौजूदा चीफ जस्टिस यूयू ललित 8 नवंबर को अपने पद से रिटायर होंगे। डीवाई चंद्रचूड़ के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ देश के 16वें चीफ जस्टिस थे। विष्णु चंद्रचूड़ इस पद पर 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक रहे। डीवाई चंद्रचूड़ भी अब मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे हैं। दिलचस्प बात है कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ अपने पिता के ही कई महत्वपूर्ण फैसलों को पलट चुके हैं।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ वर्ष 2018 में तब सुर्खियों में आ गए थे जब उन्होंने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 को असंवैधानिक करार दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट में 10 अक्टूबर 2017 को एक याचिका दाखिल कर दावा किया गया था कि धारा 497 पुरुषों से भेदभाव करती है और संविधान के आर्टिकल 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है। कोर्ट में यह याचिका प्रवासी भारतीय (NRI) जोसफ शाइन ने दाखिल कर धारा 497 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ महिला का पति व्यभिचार का केस दर्ज करा सकता है लेकिन संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ मामला दर्ज करने का प्रावधान नहीं है। यह संविधान की भावना के खिलाफ लैंगिक आधार पर भेद करता है। इसलिए इस प्रावधान को गैर-संवैधानिक घोषित किया जाए। याचिकाकर्ता का कहना था कि महिलाओं को अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता क्योंकि आईपीसी के किसी भी सेक्शन में लैंगिंक विषमताएं नहीं हैं।
याचिका में कहा गया था कि आईपीसी की धारा 497 के तहत कानूनी प्रावधान, पुरुषों के साथ भेदभाव करते हैं। इस याचिका पर फैसला देते हुए तब के चीफ जस्टिस दीप मिश्रा की पीठ ने कहा कि कोई पति अपनी पत्नी का मालिक नहीं है, लेकिन धारा 497 पत्नी को पति की संपत्ति के रूप में पेश करता है। इसलिए यह असंवैधानिक है। इस पीठ में जस्टिस डीवी चंद्रचूड़ भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि पत्नी को पति का जायदाद की तरह पेश करने वाले प्रावधान को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। इसलिए आईपीसी की धारा 497 निरस्त की जाती है।
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