नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक के अनुसार, 1990 के दशक की शुरुआत में नव-उदारवादी नीतियों के आने के बाद ग्रामीण आबादी पौष्टिक भोजन और उनके सेवन के मामले में कमी से जूझ रही है और अनुमान है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 80 प्रतिशत लोग अब प्रतिदिन 2,200 से भी कम कैलोरी प्राप्त कर रहे हैं।
उन्होंने बुधवार शाम को ‘कृषि संकट, मजदूर-किसान गठबंधन और भारत में कॉरपोरेट एवं साम्राज्यवादी ढांचे का प्रतिरोध’ विषय पर दूसरा पी. सुंदरैया स्मारक व्याख्यान देते हुए कहा, ‘‘पौष्टिक आहार के सेवन का डाटा उपलब्ध नहीं है। लेकिन जो भी उपलब्ध है, उसके आधार पर कुछ अनुमानों का उपयोग करके मैं आकलन करती हूं कि ग्रामीण आबादी का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा प्रतिदिन 2,200 से भी कम कैलोरी का सेवन कर रहा है।’’
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘आंकड़े हमें यही बताते हैं। वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षणों और राष्ट्रीय नमूना सेवा से प्राप्त सरकार के अपने आंकड़े भी यही बताते हैं और निश्चित रूप से व्यापक गरीबी में कमी के ये सभी दावे पूरी तरह से झूठे हैं।’’
भारत में स्वीकृत औसत कैलोरी की आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी है।
उन्होंने यह भी कहा कि महामारी के दौरान सरकार पांच किलोग्राम खाद्यान्न दे रही थी, लेकिन यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि यह लोगों तक किस स्तर तक पहुंचा।
उन्होंने आरोप लगाया कि महामारी के कारण पैदा हुई मंदी के प्रभाव को अब तक किसी भी विश्वसनीय डाटा में दर्ज नहीं किया गया है ‘‘क्योंकि सभी विश्वसनीय डाटा स्रोत अब पूरी तरह से कमजोर हो गए हैं’’।
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) में प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुईं पटनायक ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका का भी उल्लेख किया, जो विकसित देशों पर कृषि में सब्सिडी में कटौती करने और अपने बाजार खोलने के लिए दबाव डाल रहे हैं।
भाषा सुरभि अविनाश
अविनाश
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