मुस्लिम महिला ने शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून से शासित होने का न्यायालय से मांगा निर्देश |

मुस्लिम महिला ने शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून से शासित होने का न्यायालय से मांगा निर्देश

मुस्लिम महिला ने शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून से शासित होने का न्यायालय से मांगा निर्देश

Edited By :  
Modified Date: January 28, 2025 / 05:04 PM IST
,
Published Date: January 28, 2025 5:04 pm IST

नयी दिल्ली, 28 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक मुस्लिम महिला की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें उसने शरीयत के बजाय भारतीय उत्तराधिकार कानून से शासित होने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया है।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने अलप्पुझा की रहने वाली और ‘‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल’’ की महासचिव सफिया पी एम की याचिका पर सुनवाई की।

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिका ने एक दिलचस्प सवाल उठाया है। उन्होंने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता महिला जन्मजात मुस्लिम है। उसका कहना है कि वह शरीयत में विश्वास नहीं करती और उसे लगता है कि यह एक पश्चगामी कानून है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘यह आस्था के विरुद्ध होगा। आपको जवाबी हलफनामा दाखिल करना होगा।’’ मेहता ने निर्देश प्राप्त करने और जवाबी हलफनामा प्रस्तुत करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा।

पीठ ने चार सप्ताह का समय देते हुए कहा कि मामले की सुनवाई पांच मई से शुरू होने वाले सप्ताह में की जाएगी। पिछले साल 29 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने याचिका पर केंद्र और केरल सरकार से जवाब मांगा था।

याचिकाकर्ता ने कहा कि हालांकि उसने आधिकारिक तौर पर इस्लाम नहीं छोड़ा है, लेकिन वह नास्तिक है और अनुच्छेद 25 के तहत अपने धर्म के मौलिक अधिकार को लागू कराना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि इसमें ‘‘आस्था न रखने का अधिकार’’ भी शामिल होना चाहिए।

महिला ने यह भी कहा है कि जो लोग ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के दायरे से बाहर रहना चाहते हैं, उन्हें निर्वसीयती और वसीयती उत्तराधिकार दोनों ही स्थिति में ‘‘देश के धर्मनिरपेक्ष कानून’’ भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत शासित होने की अनुमति दी जानी चाहिए।

वकील प्रशांत पद्मनाभन के माध्यम से दायर सफिया की याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम महिलाएं शरीयत कानूनों के तहत संपत्ति में एक तिहाई हिस्सा पाने की हकदार होती हैं। वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ से शासित नहीं है, इस पर अदालत से आदेश आना चाहिए, अन्यथा उसके पिता एक तिहाई से अधिक संपत्ति नहीं दे पाएंगे।

शीर्ष अदालत ने सफिया को भारतीय उत्तराधिकार कानून और मुसलमानों को बाहर रखने वाले अन्य प्रावधानों को चुनौती देने के लिए याचिका में उचित संशोधन करने की अनुमति दी थी।

याचिका में कहा गया है, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म के मौलिक अधिकार में ‘इंडियन यंग लॉयर एसोसिएशन’ बनाम केरल राज्य (सबरीमला मामला) में दिए गए फैसले के अनुसार, आस्था रखने या न रखने का अधिकार शामिल होना चाहिए…उस अधिकार को सार्थक बनाने के लिए, जो व्यक्ति अपनी आस्था छोड़ता है, उसे विरासत या अन्य महत्वपूर्ण नागरिक अधिकारों के मामले में अयोग्य नहीं माना जाना चाहिए।’’

देश भर में इसके व्यापक प्रभाव की ओर इशारा करते हुए याचिका में पीठ से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया। याचिका में कहा गया कि उच्चतम न्यायालय में लंबित मामला सभी मुस्लिम महिलाओं के लिए है, लेकिन मौजूदा याचिका उन लोगों के लिए है, जो मुस्लिम परिवार में पैदा हुए हैं और धर्म छोड़ना चाहते हैं।

याचिका में कहा गया, ‘‘शरिया कानून के अनुसार, जो व्यक्ति इस्लाम में अपनी आस्था छोड़ देता है, उसे उसके समुदाय से निकाल दिया जाएगा और उसके बाद वह अपनी पैतृक संपत्ति में किसी भी तरह के उत्तराधिकार का हकदार नहीं होगा।’’

याचिकाकर्ता ने आशंका जताई कि यदि उनकी इकलौती बेटी आधिकारिक रूप से अपना धर्म छोड़ देती है, तो उसके मामले में कानून लागू होगा।

उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट की धारा 2 या 3 में सूचीबद्ध किसी भी मामले में इस कानून दायरे में न आने के लिए आदेश का अनुरोध किया है। महिला ने याचिका में कहा है, ‘‘लेकिन अधिनियम या नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत वह ऐसा प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकें।’’

याचिका में कहा गया है कि कानून में इस पर कुछ नहीं कहा गया है, इसलिए न्यायिक व्याख्या द्वारा इसे स्पष्ट किया जा सकता है।

भाषा आशीष दिलीप

दिलीप

Follow Us

Follow us on your favorite platform:

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)