मुस्लिम संगठनों ने उपासना स्थल कानून के संबंध में उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत किया |

मुस्लिम संगठनों ने उपासना स्थल कानून के संबंध में उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत किया

मुस्लिम संगठनों ने उपासना स्थल कानून के संबंध में उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत किया

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Modified Date: December 12, 2024 / 07:54 PM IST
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Published Date: December 12, 2024 7:54 pm IST

लखनऊ/नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, शिया पर्सनल लॉ बोर्ड तथा जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उपासना स्थल अधिनियम-1991 को लेकर उच्चतम न्यायालय द्वारा बृहस्पतिवार को दिए गए आदेश का स्वागत किया है।

शीर्ष अदालत के आदेश पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य और लखनऊ के शहर काजी मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने उपासना स्थल अधिनियम के मामले में जो निर्देश दिए हैं उनका हम स्वागत करते हैं।”

वहीं, जमीयत (एएम) के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने एक बयान में उम्मीद जताई कि इस फैसले से देश में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वालों पर रोक लगेगी।

उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद पर आए फैसले को ‘‘भारी मन’’ से यह सोचकर स्वीकार किया गया था कि देश में मस्जिद-मंदिर के अब किसी विवाद का जन्म नहीं होगा और देश में शांति एपं भाईचारे का माहौल होगा। उन्होंने आरोप लगाया कि मगर आज एक बार फिर देश की स्थिति को बाबरी मस्जिद की तरह विस्फोटक बनाने की साजिश की जा रही है।

इस बीच, जमीयत (एमएम) के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा, “हमें अतीत में झांकने से ज्यादा इस देश के भविष्य के निर्माण और इसके विकास में सभी वर्ग के लोगों के समान प्रतिनिधित्व पर पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य इस देश में शांति-व्यवस्था की रक्षा करना है।”

ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने भी न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय का फैसला बेहतरीन है और मैं बोर्ड की तरफ से इसका स्वागत करता हूं। इस फैसले से मुल्क का माहौल बेहतर होगा।’’

अब्बास ने कहा, ‘‘मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च या इमामबाड़ा हो, आदमी इन सभी जगह पर मन की शांति के लिए जाता है। अगर इन स्थलों के नाम पर लड़ाई-झगड़े होने लगेंगे तो इंसान कहां जाएगा? मेरे देश की न्यायपालिका ने जो तय किया है, जो फैसला दिया है, उसका मैं स्वागत करता हूं।’’

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक महत्वपूर्ण निर्देश देते हुए अगले आदेश तक देश की सभी अदालतों को 1991 के कानून के तहत उपासना स्थलों के सर्वेक्षण समेत राहत दिए जाने के अनुरोध संबंधी किसी भी मुकदमे पर विचार करने और कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से रोक दिया।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने यह निर्देश उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से संबंधित याचिकाओं और प्रतिवाद याचिकाओं पर दिया।

संबंधित कानून के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह उस दिन था। यह किसी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दायर करने पर रोक लगाता है।

पीठ ने कहा कि उसके अगले आदेश तक कोई नया वाद दायर या पंजीकृत नहीं किया जाएगा और लंबित मामलों में अदालतें उसके अगले आदेश तक कोई ‘‘प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश’’ पारित नहीं करेंगी।

इसने कहा, ‘‘हम 1991 के अधिनियम की शक्तियों, स्वरूप और दायरे की पड़ताल कर रहे हैं।’’

पीठ ने अन्य सभी अदालतों से इस मामले में दूर रहने को कहा।

हिंदू पक्ष की ओर से पेश हुए कई वकीलों ने आदेश का विरोध करते हुए कहा कि उन्हें सुने बिना आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने केंद्र से इन याचिकाओं पर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा। इसने केंद्र द्वारा याचिकाओं पर जवाब दाखिल किए जाने के बाद संबंधित पक्षों को भी प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।

पीठ दलीलें पूरी होने के बाद सुनवाई की अनुमति देगी।

भाषा सलीम नोमान नोमान नेत्रपाल

नेत्रपाल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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