नयी दिल्ली, सात अक्टूबर (भाषा) भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, लेकिन अब भी काफी कुछ किया जाना बाकी है क्योंकि कर्मचारियों को महामारी में ज्यादा जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। यह जानकारी एक अध्ययन में सामने आई है।
मानव संपदा प्रबंधन प्रौद्योगिकी सेवा प्रदाता कंपनी एडीपी की तरफ से कराए गए अध्ययन में पता चला कि दुनिया में औसत मानसिक देखभाल की तुलना में भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। रिपोर्ट का शीर्षक ‘पीपुल एट वर्क 2021 : ए ग्लोबल वर्कफोर्स व्यू’ है।
भारत में करीब 70 फीसदी कर्मचारियों का कहना है कि उनके नियोक्ता उनके मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल में सहयोग करते हैं, जबकि दुनिया में यह औसत 65 प्रतिशत है।
एडीपी भारत एवं दक्षिण पूर्व एशिया के प्रबंध निदेशक राहुल गोयल ने कहा, ‘‘यह महत्वपूर्ण है कि व्यावसायिक प्रतिष्ठान महामारी के कारण लोगों की भावनात्मक एवं मानसिक सेहत पर ध्यान दे रहे हैं और इससे निपटने के लिए सकारात्मक उपाय अपना रहे हैं।’’
गोयल ने कहा, ‘‘यह दिलचस्प है कि भारतीय कर्मचारियों को अन्य देशों की तुलना में ज्यादा समर्थन मिल रहा है। महामारी के दौरान कई भारतीय कंपनियों ने अपने कर्मचारियों का नियमित सहयोग किया, हमेशा उनकी काउंसिलिंग की और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अतिरिक्त छुट्टियां भी मंजूर कीं।’’
सहयोग के बावजूद महामारी के कारण हुआ तनाव अब भी भारत में कर्मचारियों के लिए बड़ी चुनौती है।
वैश्विक स्तर पर 32,000 से अधिक लोगों पर किए गए अध्ययन में पता चला कि कोविड-19 के दौरान कर्मचारियों के समय एवं उत्पादकता पर लगातार नजर रखी जा रही है जिससे उनमें तनाव का खतरा ज्यादा होता है।
रिपोर्ट में कहा गया कि तीन में से एक व्यक्ति ने कहा कि महामारी के बाद से वे ज्यादा जिम्मेदारी ले रहे हैं।
कोविड-19 की शुरुआत के बाद से स्वस्थ रहना तथा काम एवं परिवार की जरूरतों के बीच संतुलन बनाने को करीब 20 फीसदी कर्मचारियों ने सबसे बड़ी चुनौती माना।
भाषा नीरज नीरज माधव
माधव
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