मैला ढोने की प्रथा: उच्चतम न्यायालय हलफनामों से संतुष्ट नहीं |

मैला ढोने की प्रथा: उच्चतम न्यायालय हलफनामों से संतुष्ट नहीं

मैला ढोने की प्रथा: उच्चतम न्यायालय हलफनामों से संतुष्ट नहीं

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Modified Date: February 27, 2025 / 08:06 PM IST
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Published Date: February 27, 2025 8:06 pm IST

नयी दिल्ली, 27 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली, कोलकाता और हैदराबाद के प्राधिकारियों के इस जवाब पर अप्रसन्नता व्यक्त की है कि उन्होंने अपने-अपने शहरों में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को कैसे बंद किया।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के निगम आयुक्त, दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के निदेशक (एस एंड डीएम) तथा ‘हैदराबाद मेट्रोपॉलिटन वाटर एंड सीवरेज बोर्ड’, तेलंगाना के प्रबंध निदेशक को अगली सुनवाई पर उपस्थित रहने का निर्देश दिया।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि केएमसी, डीजेबी और हैदराबाद मेट्रोपॉलिटन जल एवं सीवरेज बोर्ड ने यह स्पष्ट नहीं किया कि उनके शहरों में हाथ से मैला ढोने और सीवर की सफाई के कारण कुछ मौतें कैसे हुईं।

न्यायालय ने वृहत बेंगलुरु महानगर पालिका के आयुक्त को भी उपस्थित रहने का निर्देश देते हुए कहा कि न तो कोई हलफनामा दिया गया और न ही न्यायालय में कोई प्रतिवेदन दिया गया।

पीठ ने 19 फरवरी को कहा, ‘‘इस बीच, इस अदालत के समक्ष दिए गए पांच हलफनामों में से कोलकाता नगर निगम और दिल्ली जल बोर्ड की ओर से दायर दो हलफनामे बिल्कुल भी संतोषजनक नहीं हैं।’’

हाथ से मैला उठाने की प्रथा के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि इन शहरों में हाथ से मैला उठाने की प्रथा और हाथ से सीवर की सफाई बंद कर दी गई है या नहीं।

केएमसी के हलफनामे के संबंध में पीठ ने कहा, ‘‘ ..फिर भी उनकी ओर से इस अदालत को यह बताने के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि मैला ढोने और हाथ से सीवर की सफाई बंद होने के उनके दावे के बाद भी दो फरवरी 2025 को हाथ से मैला ढोने के कारण तीन मौतें क्यों हुईं।’’

पीठ ने कहा कि दिल्ली जल बोर्ड का हलफनामा इस प्रश्न का ‘बहुत ही टालमटोल वाला उत्तर’ है कि क्या दिल्ली में हाथ से मैला ढोने की प्रथा और सीवर की सफाई जारी है या नहीं।

पीठ ने कहा कि मुंबई और चेन्नई के प्राधिकारियों द्वारा दायर हलफनामे संतोषजनक थे।

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 20 मार्च की तारीख निर्धारित की।

सर्वोच्च न्यायालय ने 29 जनवरी को दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था।

भाषा

शोभना वैभव

वैभव

 

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