(पायल बनर्जी)
नयी दिल्ली, 28 दिसंबर (भाषा) पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का उपचार करने वाले चिकित्सकों का कहना है कि वह बेहद विनम्र थे और सभी चिकित्सकीय सलाह का गंभीरता से पालन करते थे।
प्रधानमंत्री के चिकित्सा पैनल के अध्यक्ष रहे डॉ. श्रीनाथ रेड्डी ने याद करते हुए कहा ‘‘प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने सफदरजंग लेन स्थित आवास पर घरेलू सहायकों को कहने के बजाय चाय रखने के लिए खुद ही छोटी सी मेज की व्यवस्था की, ताकि हम आराम से चाय पी सकें।’’
डॉ. रेड्डी ने मनमोहन सिंह को याद करते हुए कहा कि यह डॉ. सिंह के 7 रेसकोर्स रोड (अब लोककल्याण मार्ग) स्थित प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास में स्थानांतरित होने से कुछ ही दिन पहले की बात है, जिसे उस समय तैयार किया जा रहा था।
वर्ष 2004 से 2014 के बीच दो बार प्रधानमंत्री रहे सिंह का बृहस्पतिवार को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। वह 92 साल के थे। शनिवार को उनका अंतिम संस्कार किया गया।
दिल्ली स्थित एम्स में हृदय रोग विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. रेड्डी मनमोहन सिंह को 2004 से जानते थे। डॉ. रेड्डी उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में याद करते हैं, जो हमेशा चिकित्सकीय सलाह का पालन करते थे।
‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ के संस्थापक अध्यक्ष ने कहा, ‘‘जब डॉक्टर अपने तर्क समझाते थे, वह कभी उनकी सलाह पर आपत्ति नहीं जताते थे।’’
पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव के निजी चिकित्सक के रूप में काम कर चुके डॉ. रेड्डी ने कहा कि वह 2004 में प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुरोध के बावजूद मनमोहन सिंह के निजी चिकित्सक नहीं बन सके, क्योंकि तब तक वह दिल्ली एम्स में हृदय रोग विभाग के प्रमुख बन चुके थे।
हालांकि, उन्होंने अग्रणी अस्पताल के ‘‘बहुत सक्षम और कर्तव्यनिष्ठ’’ हृदय रोग विशेषज्ञों डॉ. नीतीश नाइक और डॉ. अम्बुज रॉय के नामों की सिफारिश मनमोहन सिंह के निजी चिकित्सक और वैकल्पिक चिकित्सक के रूप में की।
इसके बावजूद, राव के समय से प्रधानमंत्री की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के बारे में डॉ. रेड्डी के अनुभव के कारण, उनके अधीन एक मेडिकल पैनल का गठन किया गया, जिसमें डॉ. नाइक, डॉ. रॉय और एम्स में एंडोक्राइनोलॉजी एवं मेटाबॉलिज्म विभाग के प्रमुख डॉ. निखिल टंडन सदस्य थे।
उन्होंने मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री के रूप में दस वर्षों (2004-14) के कार्यकाल के दौरान आधिकारिक तौर पर तथा उसके बाद उनके अंतिम दिनों तक अनौपचारिक रूप से उनकी स्वास्थ्य आवश्यकताओं का ध्यान रखा। डॉ. रेड्डी ने कहा, ‘‘वह बेहद विनम्र और सौम्य व्यक्ति थे। जब भी हम उनके निवास पर उनसे मिलने जाते थे, तो वह हमें कार तक छोड़ने आते थे।’’
उन्होंने बताया कि जनवरी 2009 में जब सिंह को दोबारा कोरोनरी धमनी बाईपास ग्राफ्टिंग (सीएबीजी) करवानी पड़ी, तो पूर्व प्रधानमंत्री ने जोर दिया कि वह यह उपचार एम्स दिल्ली में ही करवाएंगे, न कि विदेश में किसी अस्पताल में।
उस समय, डॉक्टरों में इस बात पर मतभेद था कि मनमोहन सिंह को दोबारा एंजियोप्लास्टी करवानी चाहिए या दोबारा बाईपास सर्जरी करवानी चाहिए। सिंह की पहली सीएबीजी 1990 में ब्रिटेन में की गई थी।
डॉ. रेड्डी ने कहा, ‘‘जब मैंने उन्हें दोनों उपचार के फायदे और नुकसान के बारे में समझाया, तब वह कैथ लैब में थे। मुझे अच्छी तरह याद है कि उन्होंने 30 सेकंड का समय लिया और फिर कहा…चलो सर्जरी के लिए चलते हैं। उनकी सोच बिल्कुल स्पष्ट थी।’’
उन्होंने याद किया कि यह घटना गणतंत्र दिवस समारोह से कुछ दिन पहले की है और प्रधानमंत्री के लिए उनका साहस असामान्य था। डॉ रेड्डी ने कहा, ‘‘कोई भी प्रधानमंत्री समारोह खत्म होने का इंतजार करता और लोगों के सामने बीमार के रूप में नहीं दिखना चाहता। लेकिन उन्होंने चिकित्सा सलाह को स्वीकार किया और बहुत जल्दी एक सूचित निर्णय लिया। उन्हें हम पर बहुत भरोसा था।’’
मनमोहन सिंह से मिलने का कई बार अवसर प्राप्त कर चुके एम्स के पूर्व निदेशक और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. रणदीप गुलेरिया ने उन्हें ‘‘अनुशासित, मृदुभाषी, व्यावहारिक और आज्ञाकारी मरीज बताया, जो चिकित्सकीय निर्देशों का पूरी लगन से पालन करते थे।’’
दिल्ली एम्स में आर पी सेंटर के प्रमुख डॉ. जीवन टिटियाल ने 2008 में सिंह की दोनों आंखों की मोतियाबिंद सर्जरी की थी। उन्होंने सिंह को एक विनम्र व्यक्ति के रूप में याद किया, जो ऑपरेशन के बाद नियमित रूप से फॉलो-अप करते थे। उन्होंने कहा, ‘‘उनमें अहंकार नहीं था और वह चिकित्सकीय सलाह का सावधानी से पालन करते थे। वह जिज्ञासु थे, लेकिन चिकित्सकों पर उनका पूरा भरोसा था।’’
भाषा आशीष दिलीप
दिलीप
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