नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा) पूर्व सूचना आयुक्तों और आरटीआई कार्यकर्ताओं ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन के साथ पारदर्शिता, जवाबदेही और लोकतांत्रिक सशक्तीकरण के युग की शुरुआत करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकारी कामकाज पर ‘‘इसके प्रभाव को लेकर थोड़े अनिश्चित’’ थे लेकिन वह ‘‘जवाबदेही और पारदर्शिता’’ के विचार के प्रति प्रतिबद्ध थे।
दो बार प्रधानमंत्री रहे सिंह का बृहस्पतिवार को निधन हो गया था। वह 92 साल के थे। सिंह को बृहस्पतिवार की शाम तबीयत बिगड़ने पर दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था।
सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने 2005 में सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम लागू किया था। इस अधिनियम ने नागरिकों को 10 रुपये का भुगतान करके सरकार से सूचना मांगने का अधिकार प्रदान किया जिससे सरकारी कामकाज में दशकों से चली आ रही गोपनीयता समाप्त हो गई थी।
देश के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘उन्होंने मुझे बताया था कि वह सरकारी कामकाज पर आरटीआई के प्रभाव को लेकर थोड़े अनिश्चित थे। वह एक सच्चे नौकरशाह थे जो सरकार में गोपनीयता के महत्व को समझते थे। इसलिए वह थोड़ा आशंकित थे, लेकिन वह जवाबदेही और पारदर्शिता के विचार के प्रति प्रतिबद्ध थे।’’
उन्होंने कहा कि सिंह इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि केन्द्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) का नेतृत्व प्रशासनिक सेवा से आए किसी व्यक्ति को करना चाहिए, क्योंकि वह सरकार के कामकाज को समझेंगे और यह जान सकेंगे कि किस प्रकार की सूचना का खुलासा किया जा सकता है और किस प्रकार की सूचना को रोका जाना चाहिए।
हबीबुल्लाह ने कहा कि सहमति और असहमति दोनों थीं, लेकिन सिंह जवाबदेही और पारदर्शिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लेकर अडिग थे।
नौकरशाह से कार्यकर्ता बनीं अरुणा रॉय, जो आरटीआई अधिनियम को आकार देने में प्रमुख व्यक्तियों में से एक थीं, ने कहा कि यह कानून संभवतः सबसे महत्वपूर्ण कानूनों में से एक माना जाएगा क्योंकि यह सरकार के साथ नागरिकों के संबंधों में एक मौलिक बदलाव लेकर आया।
उन्होंने कहा, ‘‘आरटीआई समेत अनेक विधेयकों पर डॉ. मनमोहन सिंह के साथ हमारी अनेक बातचीत में वह हमेशा इस बात पर अड़े रहे कि वह भारत में पारदर्शिता का युग लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’
रॉय ने कहा कि सिंह की आशंकाओं के बावजूद, उनके कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय आरटीआई आवेदनों का जवाब देने में सर्वश्रेष्ठ था।
उन्होंने कहा, ‘‘उनकी सरकार ने मनरेगा का सामाजिक लेखा परीक्षण शुरू किया और उन्हें पता था कि पारदर्शिता व्यापक सामाजिक क्षेत्र के कानूनों, जैसे रोजगार गारंटी, भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार और वन अधिकार अधिनियम के अधिक प्रभावी संचालन के लिए एक आवश्यक शर्त थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन ऐतिहासिक कानूनों ने नागरिकों को पारदर्शिता और आरटीआई के माध्यम से अपने अधिकारों को प्राप्त करने का अधिकार दिया है।’’
रॉय ने कहा कि एक मजबूत आरटीआई कानून पारित करके संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने परामर्श, विचार-विमर्श और नागरिक निगरानी का युग शुरू किया है, जो एक ऐसे लोकतंत्र में बहुत जरूरी है जहां नागरिकों की भागीदारी पांच साल में एक बार मतदान तक ही सीमित है।
पूर्व सूचना आयुक्त और आरटीआई कार्यकर्ता शैलेश गांधी ने कहा, ‘‘मनमोहन सिंह ने आरटीआई अधिनियम लाकर एक बेहतरीन काम किया। हम दुनिया के सबसे बेहतरीन अधिनियमों में से एक लाने के लिए मनमोहन सिंह के हमेशा आभारी रहेंगे।’’
जाने-माने आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने कहा कि यह अधिनियम प्रधानमंत्री के रूप में सिंह के पहले कार्यकाल में पारित और क्रियान्वित किया गया था, हालांकि उन्होंने प्रस्तावित पारदर्शिता कानून की व्यापकता और दायरे के बारे में कथित तौर पर आशंकाएं व्यक्त की थीं।
नायक ने कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में उनके एक दशक लंबे कार्यकाल के दौरान, प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आरटीआई अधिनियम के विवरण को समझाने के लिए सबसे अधिक संख्या में मार्गदर्शन नोट जारी किए गए थे, क्योंकि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग उनके अधीन था।
आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने कहा कि इस अधिनियम के जरिये लोकतांत्रिक ढांचे में सत्ता के पुनर्वितरण का महत्वपूर्ण कार्य शुरू किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘शायद सत्ता के केंद्र में यह बदलाव ही है जिसके कारण सरकारें इसे कमजोर करने के लिए बार-बार प्रयास करती हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान, सरकार ने आरटीआई अधिनियम को कमतर करने के लिए कई संशोधन प्रस्तावित किए, हालांकि नागरिकों के प्रतिरोध के कारण उन्हें कभी भी पारित नहीं किया जा सका।’’
भाषा
देवेंद्र माधव
माधव
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)