नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा) पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का राजनीतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन बेदाग रहा और सभी वर्गों के बीच उन्हें अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा गया। लेकिन उन्हें उस समय अदालती कार्यवाही से दो चार होना पड़ा जब उन्हें कोयला खदान आवंटन मामले में आरोपी के रूप में तलब किया गया।
सिंह का बृहस्पतिवार को 92 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय राजधानी में निधन हो गया।
उच्चतम न्यायालय ने हालांकि हस्तक्षेप किया और उन्हें तलब किए जाने के निर्देश पर रोक लगा दी।
एक कुशल अर्थशास्त्री और सम्मानित राजनीतिज्ञ सिंह ने उनके जैसे सार्वजनिक अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए अनिवार्य मंजूरी के अभाव पर सवाल उठाया, तथा कोयला खदान आवंटन से संबंधित अपने निर्णय में किसी भी प्रकार के अपराध से इनकार किया।
शीर्ष अदालत में उनकी अपील में अधीनस्थ अदालत के मार्च 2015 के आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें हिंडाल्को को तालाबीरा-2 कोयला खदान के आवंटन में कथित अनियमितताओं में उन्हें आरोपी के रूप में तलब किया गया था।
अपील में कहा गया था, “याचिका में कानूनी तौर पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं जिसके लिए इस न्यायालय से सरकारी कार्यों और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आपराधिक अभियोजन के बीच परस्पर संबंध के सिलसिले में एक आधिकारिक निर्णय की आवश्यकता है, विशेषकर ऐसे मामलों में जहां किसी प्रकार के लेन-देन का आरोप तो दूर की बात है, इसकी जरा भी भनक तक नहीं होती और मामला सरकारी निर्णयों की प्रक्रिया पर आधारित होता है।”
अधीनस्थ अदालत के न्यायाधीश भरत पाराशर ने 11 मार्च 2015 को सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और उसी वर्ष आठ अप्रैल को सिंह और अन्य को आरोपी के रूप में तलब किया था।
जब कथित घोटाला हुआ था, उस समय पूर्व प्रधानमंत्री के पास अन्य मंत्रालयों के अलावा कोयला मंत्रालय भी था। न्यायाधीश पाराशर ने 2017 में कहा था कि सिंह के पास यह मानने का कोई कारण नहीं था कि तत्कालीन कोयला सचिव एच. सी. गुप्ता ने मध्य प्रदेश में कोयला खदान के आवंटन के लिए एक गैर-अनुपालन वाली निजी फर्म की सिफारिश की थी।
गुप्ता को पूर्व प्रधानमंत्री के समक्ष “बेईमानी से गलत बयानी” करके अनियमितता बरतने का दोषी ठहराया गया था, तथा पाया गया था कि प्रधानमंत्री ने केवल गुप्ता की अध्यक्षता वाली जांच समिति की सिफारिशों पर ही कार्य किया था।
अदालत ने कहा कि सिंह के पास यह मानने का कोई कारण नहीं था कि दिशानिर्देशों का अनुपालन नहीं किया गया है।
न्यायाधीश ने कहा, “यह तथ्य कि देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोयला मंत्रालय का प्रभार अपने पास ही रखना उचित समझा, यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि उक्त मंत्रालय का कार्य कितना महत्वपूर्ण था।”
अदालत ने आगे कहा कि यह स्पष्ट है कि सिंह ने जांच समिति की सिफारिश पर इस धारणा के आधार पर विचार किया कि आवेदनों की पात्रता और पूर्णता की कोयला मंत्रालय में जांच की गई होगी।
न्यायालय ने कहा, “जांच समिति की सिफारिश के अनुमोदन के लिए फाइल को कोयला मंत्री के रूप में प्रधानमंत्री के पास भेजते समय, गुप्ता की तो बात ही छोड़िए, मंत्रालय के किसी भी अधिकारी ने यह नहीं कहा कि आवेदनों की पात्रता और पूर्णता की जांच नहीं की गई है।”
भाषा प्रशांत नरेश
नरेश
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