नयी दिल्ली, 10 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया है जिसने आठ साल की अपनी बेटी का कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया था ।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोपी ने कथित तौर पर ‘अपनी ही बेटी के साथ बहुत जघन्य अपराध किया है’ और उसे राहत देने से यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाएगा, जिसका उद्देश्य बच्चों को यौन उत्पीड़न, उत्पीड़न और शोषण से बचाना है।
न्यायाधीश ने आरोपी के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि उसकी पत्नी ने वैवाहिक कलह के कारण उसके खिलाफ झूठी शिकायत की है । न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि एक मां अपनी बेटी के जीवन को खतरे में नहीं डालेगी ।
अदालत ने कहा कि यौन उत्पीड़न का कृत्य बच्चों को मानसिक आघात पहुंचा सकता है और आने वाले वर्षों में उनकी विचार प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है, उनके सामान्य सामाजिक विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है और ऐसी समस्याएं पैदा कर सकता है जिनके लिए मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है।
न्यायालय ने हाल ही में दिए गए आदेश में कहा, ‘‘बच्चे की भलाई को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिसकी मानसिक स्थिति कमजोर, संवेदनशील और विकासशील अवस्था में है। बचपन में यौन शोषण के दीर्घकालिक प्रभाव कई बार असहनीय होते हैं।’’
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप पॉक्सो अधिनियम के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं, जिसके लिए कम से कम 20 साल के कठोर कारावास या यहां तक कि मृत्युदंड भी हो सकता है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘पॉक्सो अधिनियम बच्चों को यौन उत्पीड़न, उत्पीड़न और शोषण से बचाने के लिए लाया गया है। अपनी ही बेटी पर अपराध करने के आरोपी याचिकाकर्ता को इस समय जमानत देने से इस कानून को लागू करते समय ध्यान में रखे गए उद्देश्य को नुकसान पहुंच सकता है। इन टिप्पणियों के साथ, याचिका खारिज की जाती है।’’
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