(अरुणव सिन्हा)
महाकुम्भ नगर, 12 जनवरी (भाषा) महाकुम्भ में पौष पूर्णिमा के प्रथम स्नान शुरू होने से पहले अध्यात्म से जुड़े संतों और लोगों का मानना है कि अन्य कुम्भ की तुलना में यह महाकुम्भ राष्ट्र और लोगों को अधिक शक्ति प्रदान करेगा।
संतों का यह भी विश्वास है कि प्रयागराज में कुम्भ के दौरान किए गए यज्ञ का अन्य स्थानों पर किए गए यज्ञ की तुलना में अधिक प्रभाव होगा।
गोवर्धन पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ ने रविवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “इसे इसलिए महाकुम्भ कहा जा रहा क्योंकि यह 12 पूर्ण कुम्भों के बाद हो रहा है। हालांकि हमारे लिए प्रत्येक कुम्भ शुभ और शक्तिवर्धक है। हालांकि यह महाकुम्भ इस राष्ट्र, भक्तों और तीर्थयात्रियों को अन्य कुम्भ की तुलना में अधिक शक्ति प्रदान करने जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि यहां संतों के बीच विचार विमर्श, यज्ञ और अन्य अध्यात्मिक गतिविधियों से एक शक्ति उत्पन्न होती है जिससे यह राष्ट्र और मजबूत, समृद्ध होगा और पूरी दुनिया और मानवता के लिए एक सकारात्मक संदेश देगा।
देवतीर्थ ने कहा, “कुम्भ मेले के दौरान यज्ञ भी किए जाएंगे और माना जाता है कि प्रयागराज में कुम्भ के दौरान किए गए यज्ञ का अन्य स्थानों पर किए गए यज्ञ की तुलना में अधिक प्रभाव होता है।”
महाकुम्भ मेले के अध्यात्मिक पहलू पर प्रकाश डालते हुए राम नाम बैंक के संयोजक आशुतोष वार्ष्णेय ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “हिंदुओं के सबसे पवित्र उत्सवों में से एक कुम्भ मेला का उद्गम पौराणिक, ऐतिहासिक और ज्योतिष से है। पवित्र अमृत कलश से कुम्भ शब्द निकला है।”
उन्होंने कहा कि देवों और असुरों के बीच युद्ध के बाद दोनों अमृत प्राप्त करने के लिए ‘समुद्र मंथन’ करने को राजी हुए। इस समुद्र मंथन से 14 बहुमूल्य चीजें निकलीं और नागवासुकी का उपयोग रस्सी के तौर पर किया गया था और जब देवों के चिकित्सक धनवन्तरि ने अमृत कलश देवों को सौंपा तो देव और असुर में टकराव पैदा हो गया।
उन्होंने बताया कि मोहिनी के वेश में भगवान विष्णु ने हस्तक्षेप किया और कहा कि हर किसी को अमृत का रसपान करना चाहिए। उन्होंने अमृत कलश इंद्र के पुत्र जयंत को दे दिया और जैसे ही जयंत असुरों से इसकी रक्षा करने के लिए वहां से भागे, अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों- हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में गिर गईं और ये स्थान कुम्भ मेले के लिए पवित्र हो गए।
पौष पूर्णिमा के महत्व के बारे में लखनऊ स्थित ज्योतिष त्रिलोकी नाथ सिंह ने कहा कि पौष पूर्णिमा, पौष माह में शुक्ल पक्ष के 15वें दिवस पर पड़ता है और इसी दिन से कल्पवास की शुरुआत की जाती है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुताबिक, महाकुम्भ मेला 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलेगा जहां भारत की प्राचीन संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के दर्शन होंगे। महाकुम्भ भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण है।
भाषा अरुणव राजेंद्र
नोमान
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