नयी दिल्ली, सात जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कानूनों की प्रभावशीलता और क्रियान्वयन में खामियों का पता लगाने के लिए इनकी समय-समय पर विधायी समीक्षा होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत चुनाव याचिका दायर करने के लिए 45 दिन की समय सीमा तय किए जाने के खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा, ‘‘जब भी कोई नया कानून बनाया जाता है, तो समय-समय पर उसकी विधायी समीक्षा होनी चाहिए। समीक्षा केवल न्यायिक समीक्षा तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि विधायी समीक्षा भी होनी चाहिए। आप इसे हर 20 साल, 25 साल या 50 साल में कर सकते हैं, इससे कमियों का पता लगाने में मदद मिलेगी।’’
उच्चतम न्यायालय ने इस आधार पर मेनका गांधी की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया कि वह कानून नहीं बना सकता। न्यायालय ने कहा कि एक विशेषज्ञ निकाय होना चाहिए जो समीक्षा कर सके और कमियों तथा संबंधित क्षेत्रों को चिह्नित कर सके।
मेनका गांधी की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत के दृष्टिकोण से सहमति जताते हुए कहा कि कानूनों की समीक्षा होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसा कानून नहीं बना सकते जो पत्थर की लकीर हो। ऐसा तब तक संभव नहीं है जब तक कि न्यायालय या अन्य किसी माध्यम से कोई प्रोत्साहन न मिले और फिर संशोधन किया जाए।’’
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