न्यायपालिका में लोकतंत्र की कमी, न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नहीं है लोकतांत्रिक प्रणाली: कुशवाहा |

न्यायपालिका में लोकतंत्र की कमी, न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नहीं है लोकतांत्रिक प्रणाली: कुशवाहा

न्यायपालिका में लोकतंत्र की कमी, न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नहीं है लोकतांत्रिक प्रणाली: कुशवाहा

:   Modified Date:  September 10, 2024 / 05:42 PM IST, Published Date : September 10, 2024/5:42 pm IST

नयी दिल्ली, 10 सितंबर (भाषा) राज्यसभा सदस्य उपेंद्र कुशवाहा ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश करने वाली ‘कॉलेजियम प्रणाली’ पर मंगलवार को हमला किया और आरोप लगाया कि यह पिछड़े समूहों के लोगों को उच्च न्यायपालिका में नियुक्त होने से रोकती है।

राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ‘‘न्यायपालिका में लोकतंत्र की कमी’’ उन मुद्दों में से एक होगा, जिसे वह संसद में उठाएंगे।

उन्होंने हाल ही में बिहार से राज्यसभा सदस्य के रूप में शपथ ली है।

कुशवाहा ने यह भी कहा कि अनुसूचित जातियों (एससी) के उप-वर्गीकरण में कोई समस्या नहीं है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अंदर भी ‘‘क्रीमी लेयर’’ की कोई अवधारणा नहीं होनी चाहिए।

कुशवाहा ने कहा, ‘‘न्यायपालिका में लोकतंत्र नहीं है और यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हम एक लोकतंत्र हैं लेकिन यह विडंबना है कि सबसे बड़ी संस्थाओं में से एक न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए लोकतांत्रिक प्रणाली नहीं है।’’

उन्होंने दावा किया, ‘‘आमतौर पर जिन लोगों के संपर्क होते हैं, उन्हें न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया जाता है। दलित और पिछड़े वर्ग के लोग कभी-कभार ही न्यायाधीश बनते हैं।’’

कुशवाहा ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम का भी जिक्र किया, जिसे उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया था।

उन्होंने कहा, ‘‘हम इस मुद्दे को संसद के अंदर और बाहर, दोनों जगह उठाएंगे। हम लोगों को इस मुद्दे के बारे में जागरूक करेंगे।’’

केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने 2014 में एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) अधिनियम लागू किया था।

एनजेएसी को न्यायिक नियुक्तियां करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और इसमें भारत के प्रधान न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री तथा प्रधान न्यायाधीश द्वारा नामित दो अन्य प्रख्यात व्यक्ति, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल किये गए थे।

हालांकि, अक्टूबर 2015 में शीर्ष अदालत ने इस कानून को ‘‘असंवैधानिक’’ करार देते हुए रद्द कर दिया था।

अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियों को लेकर हाल में उठे विवाद के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘उप-वर्गीकरण होना चाहिए… लेकिन ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा नहीं होनी चाहिए। यहां तक ​​कि ओबीसी में भी ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा सही नहीं है।’’

कुशवाहा ने जातिवार गणना के प्रति भी अपना समर्थन जताया और कहा कि भाजपा ने बिहार में इस सर्वेक्षण का समर्थन किया है।

यह पूछे जाने पर कि क्या वह जातिवार गणना का मुद्दा केंद्र के समक्ष उठाएंगे, उन्होंने कहा, ‘‘यदि आवश्यकता हुई तो मैं इसे उठाऊंगा।’’

हालिया लोकसभा चुनाव में, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार के रूप में काराकाट सीट पर उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के राजाराम सिंह से शिकस्त मिली थी।

कुशवाहा ने कहा कि कम सीटों पर चुनाव लड़ना उनकी पार्टी के लिए नुकसानदेह है। उन्होंने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव में, इस ‘‘गलती’’ को सुधारा जाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘लोकसभा चुनाव के फार्मूले के कारण हमें कुछ असफलताओं का सामना करना पड़ा, लेकिन अपने अनुभव के आधार पर हम विधानसभा चुनाव में सुधार करेंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बीती बातें भूल जाइए।’’

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा भारत में बेरोजगारी पर अमेरिका में की गई टिप्पणी से जुड़े एक सवाल के जवाब में कुशवाहा ने कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हम सभी को एक होना चाहिए। देश में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों हैं, लेकिन भारत के बाहर हम सब एक हैं।’’

कुशवाहा ने कहा कि वह राज्यसभा सदस्य के तौर पर बिहार के विकास पर विशेष ध्यान दिए जाने का मुद्दा उठाएंगे।

उन्होंने कहा, ‘‘जब बिहार जैसे राज्य विकसित होंगे, तभी भारत का विकास होगा।’’

भाषा सुभाष माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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