Electoral Bond: नई दिल्ली। इसी साल के मई-जून में देशभर में आम चुनाव यानी लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी तैयार में जुटे सियासी दलों को बड़ा झटका दिया हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पार्टियों के नए इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर प्रतिबन्ध लगा दिया हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन माना है।
कोर्ट ने आगे कहा कि वोटर को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का हक है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह आदेश भी दिया हैं कि बॉन्ड खरीदने वालों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए। बता दें कि कारोबारी घरानों से लेकर कई अन्य लोग पार्टियों को चुनावी चंदा देते रहे हैं।
ये जानना दिलचस्प है कि किस तरह इस स्कीम के वजूद में आने के बाद राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का स्वरूप ही पूरी तरह बदल गया। इसको समझने के लिए हमें एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर और चुनाव आयोग की रिपोर्टों को खंगालना होगा। एडीआर भारत में चुनाव सुधार को लेकर काम करने वाली संस्था है। एडीआर की एक रिपोर्ट कहती है कि चुनावी बॉन्ड की शुरुआत के बाद अगले पांच बरस में कुल बॉन्ड के जरिये जो चंदा राजनीतिक दलों को मिला। उसका 57 प्रतिशत डोनेशन यानी आधे से भी अधिक पैसा बीजेपी के पार्टी फंड में आया।
फाइनेंसियल ईयर 2017 से लेकर 2021 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये कुल करीब 9 हजार 188 करोड़ रुपए का चंदा राजनीतिक दलों को मिला। ये चंदा 7 राष्ट्रीय पार्टी और 24 क्षेत्रीय दलों के हिस्से आया। इन पांच सालों में चुनावी बॉन्ड से बीजेपी को मिले 5 हजार 272 करोड़, वहीं कांग्रेस पार्टी को इसी दौरान 952 करोड़ रुपए हासिल हुए। जबकि बाकी के बचे लगभग 3 हजार करोड़ रुपए में 29 राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा था।
Electoral Bond: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को कुल 720 करोड़ रुपये चंदे के रूप में मिला था। इसमें वैसे दानदाताओं के नाम शुमार हैं जो 20 हजार से ज्यादा रुपये चंदा के रूप में दिए हैं। बीजेपी को 2021-22 की तुलना में 22-23 में 17.1% ज्यादा चंदा मिला। कांग्रेस को 2022-23 में कुल 79.9 करोड़ रुपये चंदा मिला था। 21-22 की तुलना में उसे 16.3 फीसदी कम चंदा मिला। 21-22 में कांग्रेस को 95.4 करोड़ रुपये चंदा मिला था।
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