कोच्चि: केरल हाई कोर्ट ने एक अहम मामले में सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी सिर्फ इस आधार पर नहीं की जा सकती कि वो किसी माओवादी संगठन से जुड़ा हुआ है। अपने फैसले के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति या संगठन हिंसा या घृणा फैलाता है तो कानूनी एजेंसी ऐसे व्यक्तियों या संगठनों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती हैं।
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दरअसल केरल हाईकोर्ट ने केरल के वायनाड जिले के रहने वाले बालकृष्ण को माओवादियों से निपटने वाली पुलिस की स्पेशल विंग थंडरबोल्ट ने 20 मई 2014 को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने बालकृष्ण को माओवादी संगठन से जुड़े होने का आरोप लगाया था।
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मामले को लेकर राज्य सरकार ने जस्टिस ए मुहम्मद मुश्ताक के मई 2015 में श्याम बालाकृष्णन की याचिका पर सुनाए फैसले को चुनौती दी थी। याचिका में 20 मई 2014 को केरल पुलिस की एक टीम द्वारा बिना वॉरंट के गैरकानूनी नजरबंदी और घर की तलाशी का आरोप था। सिंगल बेंच ने तब फैसला सुनाया था कि माओवादी होना अपराध नहीं है और पुलिस किसी शख्स को ऐसी धारणा रखने के लिए हिरासत में नहीं ले सकती। कोर्ट ने पुलिस पर एक लाख का जुर्माना भी लगाया था।
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मामले में हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि ओवादी होना अपराध नहीं है, हालांकि माओवादियों की राजनीतिक विचारधारा हमारी संवैधानिक शासन व्यवस्था के साथ तालमेल नहीं बिठा पाई। मानवीय आकांक्षाओं के बारे में सोचना एक बुनियादी मानव हक है। मामले का निपटारा करते हुए अदालत ने सरकार को दो माह के भीतर बालकृष्णन को 1 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया। साथ ही सरकार को मुकदमेबाजी की लागत 10 हजार रुपउ भी चुकाने का आदेश दिया। हालांकि अदालत ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने संबंधी आवेदन को नकार दिया।
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