नयी दिल्ली, 30 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में गोपीनाथ रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति को रद्द करते हुए कुलाधिपति के रूप में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की भूमिका पर अप्रसन्नता व्यक्त की।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में वह कहीं और लिए गए फैसले या किसी निर्णय का महज समर्थन या अनुमोदन करने के लिए ‘रबड़ स्टांप’ नहीं हो सकते। न्यायालय ने इस तथ्य की आलोचना की कि कुलाधिपति का कार्यालय, जो ऐसे मामलों में कार्रवाई करने के लिए अधिकृत है, राज्य सरकार को ‘‘अनुचित हस्तक्षेप’’ करने देता है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने अदालत द्वारा उठाए गए सवाल पर सकारात्मक जवाब दिया कि ‘‘क्या कुलाधिपति ने कुलपति की पुनर्नियुक्ति की अपनी वैधानिक शक्ति को त्याग दिया या अपनी जिम्मेदारी सौंप दी।’’
केरल के राज्यपाल ने तिरुवनंतपुरम में फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री पिनराई विजयन पर रवींद्रन को कुलपति के रूप में फिर से नियुक्त करने के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया।
खान ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि राज्य की उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदु को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि विजयन ने ही रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति के लिए उनका इस्तेमाल किया था।
शीर्ष अदालत ने 72 पन्नों के अपने फैसले में कहा, ‘‘कानून के नियम के लिए आवश्यक है कि वैधानिक शक्ति उस निकाय या प्राधिकार में निहित हो, जहां कानून ऐसा प्रदान करता है, इसी तरह, वैधानिक कर्तव्य का निर्वहन उस निकाय या प्राधिकार की जिम्मेदारी है जिसे यह सौंपा गया है। वह निकाय या प्राधिकारी कहीं और लिए गए फैसले पर केवल मुहर नहीं लगा सकता या महज किसी अन्य के निर्णय का समर्थन या अनुमोदन नहीं कर सकता।’’
शीर्ष अदालत ने एक अपील पर अपना फैसला सुनाते हुए रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति को बरकरार रखने वाले केरल उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ और खंडपीठ के फैसले को रद्द कर दिया। उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए डॉ. प्रेमचंद्रन कीजोथ और अन्य ने अपील दायर की थी।
अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की स्वतंत्र शक्तियों पर विस्तार से विचार करते हुए रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति के लिए घटनाक्रम का उल्लेख किया और खान द्वारा इस मुद्दे को संभालने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि वह महज ‘‘पद के हिसाब से प्रमुख’’ नहीं हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘तथ्य यह स्पष्ट करते हैं कि कुलाधिपति की ओर से स्वतंत्र रूप से विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया या संतुष्टि से निर्णय नहीं लिया गया था और प्रतिवादी नंबर 4 को केवल राज्य सरकार के आदेश पर फिर से नियुक्त किया गया था।’’
न्यायाधीश पारदीवाला द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया, ‘‘कुलाधिपति को अपने वैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन कानून के अनुसार और अपने निर्णय के आदेशों द्वारा निर्देशित करना था, न कि किसी और के आदेश पर। कानून वैधानिक विवेक के प्रयोग में ऐसे किसी भी अतिरिक्त संवैधानिक हस्तक्षेप को मान्यता नहीं देता है।’’
भाषा आशीष माधव
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