Kargil War Conspiracy Kargil War kyo hua Kargil War ki Kahani

Kargil War Conspiracy: दोस्ती का दिखावा.. अंदर ही अंदर साजिश, खोए याक से खुली पाकिस्तान की पोल, फिर भारतीय जवानों ने दिखा दी थी औकात

दोस्ती का दिखावा.. अंदर ही अंदर साजिश, खोए याक से खुली पाकिस्तान की पोल, Kargil War Conspiracy Kargil War kyo hua Kargil War ki Kahani

Edited By :   Modified Date:  July 26, 2024 / 01:54 PM IST, Published Date : July 26, 2024/1:53 pm IST

नई दिल्लीः Kargil War kyo hua  आज यानी 26 जुलाई को भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध को 25 साल पूरे हो गए हैं। इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन देश को खदेड़ने का कार्य किया था। इस युद्ध की कुछ अनकही कहानियां भी हैं जो हर भारतीय को गौरवान्वित करती हैं। कारगिल जैसी दुर्गम स्थिति में भी कभी हिम्मत न हारने वाले भारतीय सेना के जवानों का पूरा देश कृतज्ञ है। जहां पाकिस्तान से युद्ध करते हुए हमारे 634 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। तो चलिए जानते हैं कि आखिर ये युद्ध क्यों हुआ? पाकिस्तान ने क्या साजिश रची थी?

कारगिल युद्ध जम्मू-कश्मीर राज्य के कारगिल जिले में मई से जुलाई 1999 के बीच हुआ था। साल 1999 के शुरुआत में ही पाकिस्तानी सैनिकों ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर हमारे भारतीय सीमा के अंदर घुसपैठ कर गए और कारगिल की ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया था। क्षेत्रीय लोगों ने भारतीय सेना को घुसपैठियों की सूचना दी, जब पेट्रोलिंग के लिए वाहन सेवा के कुछ जवान भेजे गए तो घुसपैठियों ने पांच जवानों को शहीद कर दिया। 10 मई, 1999 को द्रास, काकसर, बटालिक सहित कई सेक्टर में करीब 800 पाकिस्तानी घुसपैठियों के घुसने की सूचना मिली। उसके बाद ऑपरेशन विजय के तहत भारतीय वायुसेना ने घुसपैठियों के क्षेत्र में बमबारी करी। 27 मई को पाकिस्तानी सेना ने दो भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराया। जिसमें फ्लाइट लेफ्टिनेंट के. नचिकेता को बंदी बना लिया गया और स्क्वॉड्रन लीडर अजय अहूजा शहीद हो गए।

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तात्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी ये घोषणा

Kargil War kyo hua  इसके बाद देश के तात्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने घोषणा कर दी की कश्मीर में युद्ध जैसे हालात बन गए हैं। 4 जुलाई को भारतीय सेना ने लगातार 11 घंटे लड़ाई कर टाइगर हिल्स पर तिरंगा फहराया। उसके अगले ही दिन द्रास सेक्टर पर भी हमारा कब्जा हो गया। और दो दिन बाद 7 जुलाई को बाटलिक सेक्टर में जुबर पहाड़ी पर भारतीय सेना ने फिर कब्जा जमाया लेकिन इसमें कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए। 11 जुलाई को भारतीय सेना ने बाटलिक सेक्टर की सभी पहाड़ियों की चोटियों पर कब्जा जमाया जिसके बाद 12 जुलाई को पाकिस्तान के तात्कालिक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भारत के सामने बातचीत की पेशकश की। 14 जुलाई को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को देश से पूरी तरह से खदेड़ दिया और फिर 26 जुलाई को भारत ने कारगिल युद्ध को जीतने की घोषणा कर दी।

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अंदर ही अंदर पाकिस्तान रच रहा था साजिश

एक दूरदर्शी रणनीति के तहत भारत ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कोशिश की। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी फरवरी 1999 में बस से लाहौर पहुंचे। 21 फरवरी 1999 को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ, जिसे लाहौर समझौता कहा जाता है। दोनों देशों ने कहा कि हम सह-अस्तिव के रास्ते पर आगे बढ़ेंगे। जल्द ही दोनों देश कश्मीर समेत सभी मामले मिल बैठकर सुलझा लेंगे। एक ओर वह भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा था, तो दूसरी तरफ उसकी सेना हिन्दुस्तान पर हमले की साजिश रच रही थी। पाकिस्तानी सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ इस साजिश के सूत्रधार थे। साजिश का नाम था ‘ऑपरेशन बद्र’। सेना प्रमुख के साथ पाकिस्तान सेना के बड़े अफसरों ने मिलकर इस प्लान को बनाया था। प्लान था शिमला समझौते को तोड़ने का, जिससे मुशर्रफ के नापाक मंसूबे पूरे हो सकें।

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क्या था शिमला समझौता?

दरअसल, शिमला समझौता के बाद ये तय हुआ कि कारगिल जहां सर्दियों में तापमान -30 से -40 डिग्री चला जाता है, इसलिए दोनों देशों की सेनाएं अक्तूबर के पास अपनी-अपनी पोस्ट छोड़कर वापस आ जाती थीं। इसके बाद मई-जून में दोबारा अपने-अपने पोस्ट पर जाती थीं। ‘ऑपरेशन बद्र’ में रची गई साजिश के तहत 1998 की सर्दियों में जब भारतीय सेनाएं वापस लौटीं, तब पाकिस्तानी सेना ने अपनी पोस्ट नहीं छोड़ी इसके साथ ही घुसपैठिए भारतीय पोस्ट पर कब्जा करके बैठ गए। मुशर्रफ का प्लान था कि उनकी सेना लेह-श्रीनगर हाईवे पर कब्जा कर लेगी। जिससे सियाचिन पर पाकिस्तान कब्जा कर सके।

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खोये ‘याक’ से हुआ साजिश का खुलासा

बात 2 मई, 1999 की है। ताशी नामग्याल नाम के एक चरवाहे थे। उस दिन उनका नया नवेला याक खो गया था। नामग्याल अपने याक की खोज में निकले। इसी दौरान उन्होंने कारगिल की पहाड़ियों में छिपे घुसपैठिये पाकिस्तानी सैनिकों को देखा। दरअसल, नामग्याल पहाड़ियों पर चढ़-चढ़कर देख रहे थे। वो कोशिश कर रहे थे कि कहीं उनका याक दिख जाए। इसी दौरान उन्हें अपना याक नजर आ गया। इस दौरान उन्हें याक के साथ जो कुछ दिखा वह कारगिल युद्ध की पहली घटना माना जाता है। 3 मई को उन्होंने इसकी जानकारी भारतीय सेना को दी।

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