श्रीनगर: जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। करीब एक दशक बाद यहां के मतदाताओं को मतदान का मौका मिलने जा रहा हैं। (Jammu and Kashmir’s most important product and the changes brought about by the GI tag) घाटी में शान्ति स्थापित होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश पर पुनर्गठित जम्मू-कश्मीर में यह चुनाव हैं। धारा 370 के हटने और पाकिस्तानी दखलंदाजी लगभग ख़त्म हो चुकी हैं ऐसे में यहां होने जा रहा चुनाव कई मायनो में खास हैं। यह इस बात का परिचायक भी है कि दशकों तक आतंक, असुरक्षा और अशांति के आग में झुलसने वाला जम्मू कश्मीर अपने भारत देश के साथ लोकतंत्र की दिशा में कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ चला है।
लेकिन आतंक के साये से अलग बात जम्मू की असल पहचान की करें तो यहां की संस्कृति और धरोहर ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। हालांकि जम्मू के विपरीत हालत ने इन्हे कुछ वक़्त के लिए दुनिया से दूर रखा, लेकिन जम्मू और कश्मीर अपने कुनबे में अपनी विरासत को हमेशा संजोये रखा। इसे हम जम्मू-कश्मीर का पुनर्जागरण भी कह सकते है। भारत सरकार द्वारा घाटी की पहचान को फिर से स्थापित करने और यहां की खूबसूरती से पूरी दुनिया को रूबरू कराने हर संभव प्रयास किये जा रहे है। इसी कड़ी में जीआई टैग ने मानों एक बार फिर से जम्मू-और कश्मीर की मूर्छित पहचान को संजीवनी दे दिया हैं। तो आइये जानते हैं कि जिओ टैग से कैसे हो रहा हैं जम्मू-कश्मीर और हिमालय की तलहटी में बसे इस पूरे इलाके का पुनर्जागरण।
जम्मू के जिले कठुआ की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती यहाँ की बसोहली पेंटिंग्स और पश्मीना को मानी जाती है। इसने अपनी प्राचीन कला को फिर से सजीव किया है। बसोहली पेंटिंग्स की रंगीन और जटिल डिजाइनों ने देशभर में नई पहचान को हासिल किया है। जीआई टैग्स ने इस अद्वितीय कला को क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नई पहचान दिलाई है। बता दें कि बसोहली पश्मीना अपनी बेहद नरमी, बारीकी और पंख जैसी हल्केपन के लिए मशहूर है। दुनियाभर में इसकी मांग काफी ज्त्यादा है। बसोहली पेंटिंग को 31 मार्च 2023 को जीआई टैग हासिल हुआ। उद्योग और वाणिज्य विभाग, नाबार्ड जम्मू, और मानव कल्याण संघ, वाराणसी का विशेष सहयोग रहा।
भद्रवाह राजमा, एक प्रकार की लाल किडनी बीन्स, को 2023 में जीआई टैग हासिल हुआ। इसे नाबार्ड की मदद से यह पहचान मिली और देश- दुनिया में फिर से बढ़ती हुई मांग को देखा जा सकता है। आम राजमा से अलग किस्म के इस राजमे की कीमत भी अन्य से कही ज्यादा हैं बावजूद भद्रवाह का राजमा विशिष्टता और गुणवत्ता के कारण इसे जीआई टैग दिया गया। इस नई पहचान के बाद किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिलने लगा है। एक किसान ने इस बारें में बताया कि, “इस जीआई टैग ने हमें वह पहचान दिलाई है, जिसका हम लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। अब हमारी फसल के दाम में भी बड़ा फर्क आया है।”
राजौरी की पहचान कुछ वक़्त पहले तक एक अशांत जिले तौर पर थी। गोले बारूद और बन्दूक की गोलियों ने राजौरी के असल पहचान को धुंधला करने का प्रयास किया लेकिन बदले हालत ने इस पहचान को फिर से दुनिया के सामने ला खड़ा किया। यहां के चिकारी लकड़ी की कला ने एक बार फिर से दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा हैं। लकड़ियों पर होने वाली विशिष्ट किस्म की कारीगरी की मांग एक बार फिर से बढ़ने लगी है।
जो अपने खास स्वाद, खुशबू और मिठास के लिए जाना जाता है, इस इलाके की अनमोल धरोहर है। इसे सुलाई हनी के नाम से भी पहचाना जाता है और यह बेहद पौष्टिक होता है, जिसमें ताकतवर एंटीऑक्सीडेंट और इम्यूनिटी बढ़ाने वाले गुण होते हैं। इस शहद का उत्पादन सुलई के सफेद फूलों से अगस्त से अक्टूबर के बीच किया जाता है, जब मधुमक्खियाँ इन फूलों के रस पर निर्भर होती हैं। इसका स्वाद प्राकृतिक मिठास और हल्के फूलों के स्वाद से भरा होता है।
इसी साल के जनवरी में APEDA ने जम्मू और कश्मीर में बासमती चावल के लिए पहला GI टैग सर्वेश्वर फूड्स लिमिटेड को प्रदान किया था। सबसे अनोखी बात हैं कि यह अकेली कंपनी है जिसे निर्यात के लिए जीआई टैग हासिल हुआ है। आरएस पुरा का बासमती चावल, अपनी विशिष्ट सुगंध और लंबी दानों के कारण दुनियाभर में मशहूर है। जीआई टैग ने यहां के किसानो की न सिर्फ तकदीर बदली बल्कि उन्हें कई गुना ज्यादा मुनाफा दिलाया है। यह न सिर्फ आरएस पुरा के लिए बल्कि पूरी घाटी के लिए गौरव की बात हैं कि सर्वेश्वर फूड्स लिमिटेड कंपनी को निर्यात के लिए यह टैग हासिल किया है।
कश्मीर की पहचान सिर्फ उसकी वादियों में फैली खूबसूरती से नहीं बल्कि कश्मीर का सोना कहे जाने वाले केसर से भी हैं। जी हाँ कश्मीर के सोने यानी केसर को भी जीआई टैग प्राप्त हो चुका हैं और यही वजह है कि केसर की राजधानी कहे जाने किस्तवाड़ से आगे बढ़कर दुसरे जिलों में भी आधुनिक और नवीनतम खेती की मदद से इसके उत्पादन में उछाल आया हैं। केसर उत्पादकों ने बताया, “पहले हमें अपने केसर के लिए उचित दाम नहीं मिलते थे, लेकिन अब इसका व्यापार बढ़ गया है और हमारी फसल का मूल्य बढ़ा है। “हमारा केसर अब कश्मीर के केसर से बेहतर माना जा रहा है। यह हमारे जीवन का सबसे कीमती संसाधन है और हमें अब ज्यादा मान-सम्मान मिल रहा है।”
पूरी दुनिया में भद्रवाह की पहचान लैवेंडर से ही है। लैवेंडर की मांग ब्यूटी प्रोडक्ट के रूप में ही नहीं बल्कि सुघन्ध और औषधि तौर पर भी खूब होती है। भले ही लेवेंडर को अब तक जीआई टैग हासिल नहीं हुआ हैं लेकिन लगातार बढ़ते उत्पादन और उस अनुपात में मांग में आई उछल से यहां के किसानों के चहरे खिल उठे है। लेवेंडर उत्पादक अपना अनुभव साझा करते हुए बताते है, “पहले यह फसल बहुत छोटी मानी जाती थी, लेकिन अब इसकी पहचान बढ़ी है। इससे हमें आर्थिक आजादी मिल रही है।”
जीआई टैग्स ने सिर्फ घाटी को फिर से नए पहचान दिलाई हैं बल्कि यहाँ के स्थानीय किसानों के लिए भी अवसर के नए द्वार खोले हैं। जम्मू और कश्मीर के किसानों के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और अपने उत्पाद को बाजारों तक पहुँचाने का मौका मिला हैं। आधुनिक कृषि ने इन किसानों को और भी अधिक प्रोत्साहित किया हैं। युवाओं का रुझान भी इस ओर नजर आता हैं और अपनी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए वह स्थानीय स्टार अपर ही अपने लिए रोजगार के नए द्वार खोल रहे हैं। भारत सरकार के सहयोग और सुरक्षा के भाव के बीच कश्मीर के लिए यह नई कृषि क्रांति के तौर पर उभरा है।
महाकुंभ की व्यवस्था देख अभिभूत हूं : उमा भारती
11 hours ago