नयी दिल्ली, 15 फरवरी (भाषा) ‘ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन’ (आइसा) ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में सोमवार को होने वाली कक्षाओं के बहिष्कार का आह्वान किया और दावा किया कि पीएचडी के दो छात्रों के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को लेकर प्रदर्शन करने के आरोप में 17 छात्रों को निलंबित कर दिया गया है।
विश्वविद्यालय ने छात्रों के निलंबन के दावों पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
जामिया में यह विवाद उस वक्त शुरू हुआ, जब विश्वविद्यालय ने पिछले साल दिसंबर में कथित तौर पर अनधिकृत प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले पीएचडी के छात्रों को कुछ दिन पहले निलंबित कर दिया था। विश्वविद्यालय के इस आदेश के बाद छात्रों ने वहां प्रदर्शन किया।
प्रशासन ने अपने इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि इस प्रदर्शन के कारण शैक्षणिक गतिविधियां बाधित हुई हैं और संपत्ति को नुकसान पहुंचा है, जिसमें कैंटीन को नुकसान पहुंचाया जाना और सुरक्षा सलाहकार के कार्यालय का दरवाजा तोड़ना शामिल है।
छात्र कार्यकर्ताओं ने हालांकि तर्क दिया कि प्रशासन असहमति को दबाने का प्रयास कर रहा है।
विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा की गई इस कार्रवाई के बाद छात्रों ने दावा किया कि उन्हें निलंबन का नोटिस दिया गया है जिसमें ‘‘बर्बरता, अनधिकृत प्रदर्शन और विश्वविद्यालय की बदनामी’’ में उनकी कथित संलिप्तता का हवाला दिया गया है।
वामपंथी संगठन भाकपा(माले)लिबरेशन से संबद्ध आइसा के अनुसार, विश्वविद्यालय प्रशासन ने रातों-रात 17 छात्रों को निलंबित कर दिया, जिसके कारण विभिन्न विभागों के छात्रों ने कक्षाओं के बहिष्कार में शामिल होने की घोषणा की है।
इसने एक बयान में कहा कि समाजशास्त्र, सामाजिक विज्ञान, भूगोल, हिंदी, सामाजिक कार्य, स्पेनिश और लैटिन अमेरिकी अध्ययन, फ्रेंच और कोरियाई भाषा तथा मीडिया एवं प्रशासन केंद्र के छात्रों ने इसका समर्थन करने की घोषणा की है।
एसोसिएशन ने कहा, ‘‘आप छात्रों को निलंबित कर सकते हैं, लेकिन प्रतिरोध को नहीं रोक सकते हैं।’’
विश्वविद्यालय की अनुशासन समिति 25 फरवरी को बैठक करेगी, जिसमें 15 दिसंबर 2024 को ‘जामिया प्रतिरोध दिवस’ के आयोजन में पीएचडी के दो छात्रों की भूमिका की समीक्षा की जाएगी।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ 2019 में हुए प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में, हर साल इस दिन ‘‘जामिया प्रतिरोध दिवस’’ मनाया जाता है।
प्रदर्शन कर रहे छात्र उक्त अनुशासनात्मक कार्रवाई वापस लेने, परिसर में प्रदर्शन को प्रतिबंधित करने वाले 2020 के ज्ञापन को निरस्त करने, भित्तिचित्रों और पोस्टर चिपकाने पर 50,000 रुपये के जुर्माने को हटाने और छात्रों द्वारा प्रदर्शन में शामिल होने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई न किए जाने का आश्वासन देने की मांग कर रहे हैं।
कुछ छात्रों ने दावा किया कि अक्टूबर 2024 में कुलपति मजहर आसिफ के कार्यभार संभालने के बाद से इन गतिवधियों पर प्रतिबंधों को कड़ा कर दिया गया है।
भाषा प्रीति सुभाष
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