Jagannath Mandir Rahasya: जानें आखिर क्यों हर 12 साल बाद बदली जाती है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति?, क्या है इसके पीछे की वजह |

Jagannath Mandir Rahasya: जानें आखिर क्यों हर 12 साल बाद बदली जाती है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति?, क्या है इसके पीछे की वजह

Jagannath Mandir Rahasya: जानें आखिर क्यों हर 12 साल बाद बदली जाती है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति?, क्या है इसके पीछे की वजह

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Modified Date: July 5, 2024 / 03:31 PM IST
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Published Date: July 5, 2024 3:31 pm IST

Jagannath Mandir Rahasya:  हिंदू धर्म शास्त्रों में पुरी में आयोजित विश्व विख्यात भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का विशेष महत्व वर्णित है। इस रथ यात्रा से हर समुदाय के लोग बड़ी श्रद्धा भाव से जुड़कर गौरवान्वित महसूस करते हैं। मान्यता है कि रथ यात्रा का रथ स्पर्श करने मात्र से सारे कष्टों का निराकरण हो जाता है और जीवन में शुभता एवं सकारात्मकता आती है। गौरतलब है कि इस साल पुरी (ओडिशा) में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा 07 जुलाई 2024, रविवार से शुरू होगी, और 9 दिन बाद 16 जुलाई 2024 को वापस लौटेगी। जगन्नाथ मंदिर को लेकर कई ऐसे रहस्य हैं, जो काफी चौंकाने वाले हैं। इन्हीं में से एक यह भी है कि हर 12 साल में इस धाम की मूर्तियों को बदल दिया जाता है। लेकिन ये बहुत कम लोग ही जानते है कि ऐसा क्यों किया जाता है।

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सालों से चल रही है ये परंपरा

दरअसल,जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों को हर 12 साल में बदल दिया जाता है। मूर्तियों को बदलने की इस परंपरा को ‘नवकलेवर’ कहा जाता है। नवकलेवर का अर्थ होता है नया शरीर इसके अंतर्गत जगन्नाथ मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ, बालभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन की पुरानी मूर्ति को बदलकर नई मूर्तियों को स्थापित किया जाता है। जगन्नाथ जी की मूर्तियां लकड़ी की बनी हुई हैं और उनके क्षय होने का डर रहता है इसलिए इन्हें हर 12 साल बाद बदला जाता है। तब से लेकर अब तक यह परंपरा चली आ रही है।

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मंदिर के पुजारी करते हैं पेड़ों का चुनाव

Jagannath Mandir Rahasya:  वहीं बता दें कि प्रत्येक बारह वर्ष के अंतराल में प्रतिमाएं बदलने से लेकर इसके निर्माण तक की प्रक्रिया काफी गुप्त रखी जाती है। गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा एवं बलभद्र की प्रतिमा का निर्माण नीम के लकड़ी से किया जाता है। इसके लिए मंदिर के मुख्य पुजारी पेड़ों का चुनाव करते हैं। ऐसा माना जाता है कि वृक्ष नीम के और करीब 100 साल पुराने होने चाहिए। साथ ही उनमें किसी प्रकार का दोष नहीं होना चाहिए। पेड़ों का चुनाव मंदिर के मुख्य महंत स्वयं करते हैं, इसकी पहली शर्त यह है कि यह पेड़ सौ साल पुराना होना चाहिए। नीम का यह वृक्ष पूरी तरह पवित्र स्थल पर उगा होना चाहिए। प्रतिमा का निर्माण बंद कमरे में किया जाता है। इसके बाद जब प्रतिमा पूरी हो जाती है, तब प्रतिमा बदलते समय पूरे शहर की रोशनी गुल कर दी जाती है, पुरोहितों द्वारा मंत्रोच्चारण के बीच प्रतिमाएं बदली जाती हैं।

 
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