असंवेदनशील और अमानवीय: न्यायालय ने दुष्कर्म पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणियों पर कहा |

असंवेदनशील और अमानवीय: न्यायालय ने दुष्कर्म पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणियों पर कहा

असंवेदनशील और अमानवीय: न्यायालय ने दुष्कर्म पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणियों पर कहा

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Modified Date: March 26, 2025 / 03:56 PM IST
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Published Date: March 26, 2025 3:56 pm IST

नयी दिल्ली, 26 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के बलात्कार संबंधी हालिया दृष्टिकोण पर कड़ी आपत्ति जताई तथा उसकी टिप्पणियों को पूर्णतः ‘‘असंवेदनशील’’ तथा ‘‘अमानवीय दृष्टिकोण’’ वाला बताते हुए इन पर रोक लगा दी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17मार्च के अपने एक आदेश में कहा था की महज स्तन पकड़ना और ‘पायजामे’ का नाड़ा खींचना बलात्कार के अपराध के दायरे में नहीं आता।

इसे ‘बेहद गंभीर मामला’ करार देते हुए न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, ‘‘ सामान्य परिस्थितियों में हम इस स्तर पर स्थगन देने में सुस्त हैं। लेकिन चूंकि पैराग्राफ 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों से पूरी तरह अलग हैं और पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय दृष्टिकोण वाली हैं, इसलिए हम उक्त टिप्पणियों पर स्थगन देने के लिए इच्छुक हैं।’’

दरअसल ‘‘वी द वूमेन ऑफ इंडिया’’ नामक संगठन उच्च न्यायालय द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणियों को प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के संज्ञान में लाया जिसके बाद शीर्ष अदालत ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया।

उच्च न्यायालय की विवादास्पद टिप्पणियों पर रोक लगाने का तात्पर्य यह है किसी तरह की विधिक प्रक्रिया में इनका आगे इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।

उच्च न्यायालय का आदेश दो व्यक्तियों द्वारा दायर एक याचिका पर आया था। इन आरोपियों ने कासगंज के विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी।

न्यायालय की कार्यवाही प्रारंभ होने पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया और कहा, ‘‘यह एक ऐसा फैसला है जिस पर मैं बहुत गंभीर आपत्ति जताता हूं।’’

अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी भी इस मामले में पेश हुए। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘यह बहुत गंभीर मामला है। इसमें न्यायाधीश की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता झलकती है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘ हमें न्यायाधीश के खिलाफ ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद है।’’

पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 17 मार्च के आदेश से संबंधित मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए शुरू की गई कार्यवाही में केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया।

पीठ ने उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया कि वह अपना आदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार को बताएं, जिसके बाद इसे ‘तुरंत’ वहां के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाएगा।

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से मामले की जांच करने और उचित कदम उठाने का आग्रह किया गया। पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद की जाएगी।

सुनवाई के दौरान मामले में उपस्थित एक वकील ने कहा कि उन्होंने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की है।

पीठ ने कहा कि याचिका पर स्वतः संज्ञान वाले मामले की सुनवाई के साथ की जाएगी।

एक अन्य अधिवक्ता ने कहा कि वे पीड़िता की मां की ओर से आवेदन दायर करेंगे।

उच्च न्यायालय ने 17 मार्च को अपने एक आदेश में कहा था कि महज स्तन पकड़ना और ‘पायजामे’ का नाड़ा खींचना बलात्कार के अपराध के दायरे में नहीं आता लेकिन इस तरह के अपराध किसी भी महिला के खिलाफ हमले या आपराधिक बल के इस्तेमाल के दायरे में आते हैं।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यौन अपराध के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि स्तन पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना, आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) का मामला नहीं है, बल्कि ऐसा अपराध धारा 354 (बी) (किसी महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला) के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।

यह आदेश दो व्यक्तियों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने पारित किया।

इस मामले के तथ्यों के मुताबिक, विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो अधिनियम) की अदालत में एक आवेदन दाखिल करके आरोप लगाया गया था कि 10 नवंबर, 2021 को शाम करीब पांच बजे शिकायतकर्ता महिला अपनी 14 वर्षीय बेटी के साथ ननद के घर से लौट रही थी।

दाखिल आवेदन में आरोप लगाया गया था महिला के गांव के ही रहने वाले पवन, आकाश और अशोक रास्ते में उसे मिले और पूछा कि वह कहां से आ रही है। इसके अनुसार जब महिला ने बताया कि वह अपनी ननद के घर से लौट रही है, तो उन्होंने बेटी को मोटरसाइकिल से घर छोड़ने की बात कही। इसके अनुसार महिला ने बेटी को उनके साथ जाने दिया।

दाखिल आवेदन में आरोप लगाया गया था कि आरोपियों ने रास्ते में ही मोटरसाइकिल रोक दी और लड़की का निजी अंग पकड़ लिया और आकाश लड़की को खींचकर पुलिया के नीचे ले गया जहां उसने लड़की के पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया।

पीड़ित लड़की और गवाहों का बयान दर्ज करके निचली अदालत ने दुष्कर्म के अपराध के लिए आरोपियों को समन जारी किया।

अदालत ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ आरोप यह है कि इन्होंने लड़की का निजी अंग पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने का प्रयास किया, लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप की वजह से वे लड़की को छोड़कर मौके से फरार हो गए।’’

अदालत ने 17 मार्च को दिए अपने निर्णय में कहा, ‘‘ आरोपी व्यक्तियों का लड़की के साथ दुष्कर्म करने का दृढ निश्चय था, यह संदर्भ निकालने के लिए पर्याप्त तथ्य नहीं है। आकाश के खिलाफ आरोप केवल यह है कि उसने लड़की को पुलिया के नीचे ले जाने का प्रयास किया और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ा।’’

अदालत ने कहा, ‘‘ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी ने लड़की के साथ दुष्कर्म किया। आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ लगाए गए आरोपों और इस मामले के तथ्यों से दुष्कर्म का मामला नहीं बनता।’’

अदालत ने कहा, ‘‘इस मामले के तथ्यों को देखते हुए आरोपियों के खिलाफ धारा 354(बी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9 के तहत समन जारी किया जाना चाहिए, जो एक नाबालिग बच्चे के साथ गंभीर यौन अपराध के लिए दंड की व्यवस्था देती है।’’

भाषा शोभना पवनेश

पवनेश

 

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