दीर्घकालिक विकास संभावनाओं के लिए असमानता, वेतन में स्थिरता और मुद्रास्फीति विनाशकारी : कांग्रेस |

दीर्घकालिक विकास संभावनाओं के लिए असमानता, वेतन में स्थिरता और मुद्रास्फीति विनाशकारी : कांग्रेस

दीर्घकालिक विकास संभावनाओं के लिए असमानता, वेतन में स्थिरता और मुद्रास्फीति विनाशकारी : कांग्रेस

:   Modified Date:  October 25, 2024 / 11:54 AM IST, Published Date : October 25, 2024/11:54 am IST

नयी दिल्ली, 25 अक्टूबर (भाषा) कांग्रेस ने कुछ आर्थिक आंकड़ों का उल्लेख करते हुए शुक्रवार को दावा किया कि असमानता, वेतन में स्थिरता और मुद्रास्फीति केवल राजनीतिक मुद्दे नहीं हैं, बल्कि ये भारत की दीर्घकालिक विकास संभावनाओं के लिए विनाशकारी हैं।

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक लेख का हवाला देते हुए, सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘यह बिल्कुल निर्विवाद तथ्य है कि आर्थिक विकास की उच्च दर को बनाए रखने के लिए निजी निवेश की दरों (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में) का बढ़ना सबसे महत्वपूर्ण है। ये दरें 33.4 प्रतिशत (2004-2014) से गिरकर 28.7 प्रतिशत (2014-2023) हो गई हैं।’

उन्होंने कहा कि एक प्रमुख अर्थशास्त्री का यह लेख चिंता को और बढ़ाने वाला है।

रमेश ने दावा किया, ‘इससे पता चलता है कि कुल रिपोर्ट की गई आय में निष्क्रिय आय (किराया, लाभांश, पूंजीगत लाभ आदि से आय) का हिस्सा 2016-17 में 16 प्रतिशत से बढ़कर 2023-2024 में 24 प्रतिशत हो गया है। कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए, निष्क्रिय आय (परिचालन लाभ के बाहर की आय) का हिस्सा 2016-17 में 16.6 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 30.7 प्रतिशत हो गया है।’

उन्होंने कहा कि पूंजीगत लाभ में यह बदलाव उत्पादकता बढ़ाने वाले भौतिक निवेशों के बजाय वित्तीय निवेशों के पक्ष में कॉर्पोरेट प्राथमिकताओं में बदलाव का संकेत देता है।

रमेश ने यह भी कहा, ‘भौतिक निवेश से दूरी बनाने वाले इस बदलाव का कारण कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभावों से उबरने के बाद वस्तुओं और सेवाओं की कम मांग है। महामारी ने बड़े पैमाने पर ग़रीबों और मध्यम वर्ग के लोगों को पीछे धकेल दिया है।’

उन्होंने दावा किया, ‘असमानता, वेतन में स्थिरता और मुद्रास्फीति केवल राजनीतिक मुद्दे नहीं हैं, बल्कि ये भारत की दीर्घकालिक विकास संभावनाओं के लिए विनाशकारी हैं। ‘

उन्होंने कहा कि विपक्ष की नहीं तो सरकार को कम से कम अपने ही मुख्य आर्थिक सलाहकार की बात तो सुननी ही चाहिए, जिन्होंने ख़ुद भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ते वित्तीयकरण पर चिंता जताई है।

भाषा हक खारी मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)