नयी दिल्ली, 20 नवंबर (भाषा) संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की एक नयी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2050 तक 35 करोड़ बच्चे होंगे तथा उनके कल्याण और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए देश को जलवायु की चरम स्थिति और पर्यावरणीय खतरे जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना होगा।
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत में अभी की तुलना में बच्चों की संख्या में 10.6 करोड़ की कमी आएगी, लेकिन फिर भी यह चीन, नाइजीरिया और पाकिस्तान के साथ वैश्विक बाल आबादी के 15 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करेगा।
यूनिसेफ की ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2024’ रिपोर्ट बुधवार को नयी दिल्ली में जारी की गई जिसका शीर्षक ‘द फ्यूचर ऑफ चिल्ड्रन इन ए चेंजिंग वर्ल्ड’ है। इसमें तीन वैश्विक प्रवृत्तियों- जनसांख्यिकीय बदलाव, जलवायु संकट और अग्रणी प्रौद्योगिकियों को रेखांकित किया गया है, जो 2050 तक बच्चों के जीवन को नया आकार देने में भूमिका निभा सकती हैं।
यह रिपोर्ट यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि सिंथिया मैककैफ्रे ने द एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट (टेरी) की सुरुचि भड़वाल और यूनिसेफ यूथ एडवोकेट कार्तिक वर्मा के साथ जारी की।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2050 के दशक तक, बच्चों को जलवायु की चरम स्थिति और पर्यावरणीय खतरों का अधिक सामना करना पड़ेगा और 2000 के दशक की तुलना में लगभग आठ गुना अधिक बच्चों के अत्यधिक गर्मी के प्रकोप का सामना करने की संभावना है।
रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु और पर्यावरणीय संकट में यह वृद्धि इस तथ्य से और भी जटिल हो जाती है कि और अधिक बच्चे निम्न आय वाले देशों में, खासकर अफ्रीका में रह रहे होंगे जिनकी व्याख्या ऐसे देशों के रूप में की जा सकती है जहां इन चुनौतियों से निपटने के संसाधन सीमित हो सकते हैं।
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत में जहां 2050 तक 35 करोड़ बच्चे होने का अनुमान है और उसे उन बच्चों के कल्याण और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अभी की तुलना में बच्चों की संख्या में 10.6 करोड़ बच्चों की कमी आएगी, फिर भी यह चीन, नाइजीरिया और पाकिस्तान के साथ वैश्विक बाल आबादी में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी रखेगा।
मैककैफ्रे ने कहा, ‘‘आज लिए गए निर्णय हमारे बच्चों को विरासत में मिलने वाली दुनिया को आकार देंगे। बच्चों और उनके अधिकारों को रणनीतियों तथा नीतियों के केंद्र में रखना एक समृद्ध, टिकाऊ भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक है।’’
दुनिया भर में लगभग एक अरब बच्चे पहले से ही उच्च जोखिम वाले जलवायु खतरों का सामना कर रहे हैं और बच्चों के जलवायु जोखिम सूचकांक में भारत 26वें स्थान पर है।
रिपोर्ट में पूर्वानुमान व्यक्त किया गया है कि जलवायु संकट बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा पर तथा पानी जैसे आवश्यक संसाधनों तक उनकी पहुंच पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
भड़वाल ने जलवायु के संबंध में तत्काल कार्रवाई की जरूरत बताई और कहा, ‘‘बच्चे जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं। उन्हें बदलाव के सक्रिय प्रतिनिधि के तौर पर शामिल करके हम मिलकर इन चुनौतियों पर ध्यान दे सकते हैं।’’
रिपोर्ट के अनुसार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसी प्रौद्योगिकियां बच्चों के लिए अच्छी और बुरी दोनों तरह की हो सकती हैं। हालांकि, डिजिटल विभाजन काफी गहरा है। निम्न आय वाले देशों में केवल 26 प्रतिशत लोग इंटरनेट से जुड़े हैं, जबकि उच्च आय वाले देशों में 95 प्रतिशत से अधिक लोग इंटरनेट से जुड़े हैं।
रिपोर्ट में इस अंतराल को पाटने तथा बच्चों तक ऐसी प्रौद्योगिकियों की सुरक्षित एवं समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए समावेशी प्रौद्योगिकी पहलों की वकालत की गई है।
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत को स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल और टिकाऊ शहरी अवसंरचना में निवेश को प्राथमिकता देनी होगी।
वर्ष 2050 तक भारत की करीब आधी आबादी के शहरी क्षेत्रों में रहने का अनुमान है जिससे बच्चों के लिहाज से अनुकूल और जलवायु परिवर्तन के लिहाज से जुझारू शहरी नियोजन की जरूरत होगी।
सीओपी29 में यूनिसेफ का प्रतिनिधित्व करने वाले कार्तिक वर्मा ने जलवायु शिक्षा के महत्व पर जोर दिया।
रिपोर्ट को विश्व बाल दिवस के मौके पर जारी किया गया है। इस अवसर पर राजधानी में राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट और कुतुब मीनार समेत देश में अनेक स्मारकों को यूनिसेफ को प्रतिबिंबित करने वाले नीले रंग की रोशनी से जगमग किया गया है।
भाषा वैभव सुभाष
सुभाष
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