भारत अतिसंवेदनशील समुदायों को न्यूयॉर्क क्लाइमेट सप्ताह से न्याय और कार्रवाई की उम्मीद |

भारत अतिसंवेदनशील समुदायों को न्यूयॉर्क क्लाइमेट सप्ताह से न्याय और कार्रवाई की उम्मीद

भारत अतिसंवेदनशील समुदायों को न्यूयॉर्क क्लाइमेट सप्ताह से न्याय और कार्रवाई की उम्मीद

:   Modified Date:  September 28, 2024 / 10:34 PM IST, Published Date : September 28, 2024/10:34 pm IST

(निवेदिता खांडेकर)

नयी दिल्ली, 28 सितंबर (भाषा) विश्व के नेता और अन्य हितधारक न्यूयॉर्क जलवायु सप्ताह में एकत्रित हुए हैं, ऐसे में भारत के कमजोर कृषक समुदाय जलवायु वित्त में वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का अहसास हो गया है कि जलवायु परिवर्तन का उनके जीवन पर असंगत प्रभाव पड़ रहा है, भले ही वे इसके लिए जिम्मेदार न हों।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के अनुसार, शुक्रवार तक देश में सामान्य 857.5 मिमी वर्षा के मुकाबले 917.8 मिमी वर्षा हुई। इसके बावजूद पश्चिमोत्तर भारत के मैदानी इलाकों, सिंधु-गंगा के मैदानों के बड़े हिस्से और पूर्वोत्तर भारत के लगभग आधे हिस्से में कम बारिश हुई है।

केवल वर्षा की कमी ही नहीं, बल्कि अत्यधिक गर्मी की भी समस्या है। मुख्य रूप से पूर्वोत्तर में, जहां इस सप्ताह के प्रारंभ तक लू की स्थिति थी, जिससे कई किसानों की खरीफ फसल खतरे में पड़ गई है।

एक ओर न्यूयॉर्क 22 से 29 सितंबर तक जलवायु सप्ताह का आयोजन कर रहा है, जो जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम है। वहीं दूसरी ओर, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने कई मंचों पर इस मुद्दे को उठाया, जिसमें जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक पीड़ित गरीब देशों की सहायता के लिए अरबों डॉलर जुटाना भी शामिल है।

भारत में पर्यावरण रक्षा कोष (ईडीएफ) के मुख्य सलाहकार हिशाम मुंडोल ने कहा कि भारत में लोगों के स्वास्थ्य और जलवायु दोनों को सुरक्षित रखते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने और समृद्धि बढ़ाने की क्षमता है।

ईडीएफ गैर लाभकारी संस्था है जो कृषि, पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्र में सतत आजीविका के लिए स्थानीय संगठनों के साथ काम करता है। उसने स्पष्ट किया कि कमजोर समुदाय क्या अपेक्षा कर रहे हैं।

मुंडोल ने कहा, ‘‘भारत के कमज़ोर समुदायों को उम्मीद है कि इस तथ्य को पर्याप्त मान्यता दी जाएगी कि वे जलवायु परिवर्तन से असंगत रूप से प्रभावित हैं, लेकिन इसके लिए वे ज़िम्मेदार नहीं हैं। इसलिए, जो देश और उद्योग बढ़ते तापमान और अन्य जलवायु और पर्यावरणीय बदलावों के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें लचीलापन, अनुकूलन और निर्माण को सक्षम करने के लिए उचित धन उपलब्ध कराना चाहिए।’’

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के 2021 के अध्ययन के अनुसार, 1995 से 2020 के बीच भारत ने बाढ़, चक्रवात, सूखा, शीत लहर और लू सहित 1,058 जलवायु संबंधी घटनाएं हुईं।

संयुक्तराष्ट्र में 22 सितम्बर को विश्व नेताओं ने ‘भविष्य के लिए समझौता’ को अपनाया जिसमें भावी पीढ़ियों पर एक घोषणा भी शामिल है। संयुक्तराष्ट्र के अनुसार, इस समझौते का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं उस विश्व में अपना योगदान दे सकें जो इन संस्थाओं के निर्माण के बाद से नाटकीय रूप से बदल गया है।

जलवायु सप्ताह कार्यक्रमों में भाग लेने वाले भारत के हितधारकों में साइंस फॉर सोसाइटी – एस4एस टेक्नोलॉजीज की सह-संस्थापक और महिला जलवायु सामूहिक (डब्ल्यूसीसी) की पूर्व छात्रा निधि पंत भी शामिल हैं, जो कृषि, लिंग, ऊर्जा पहुंच और वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में काम करती हैं।

पंत की एस4एस टेक्नोलॉजीज पूरे महाराष्ट्र में किसानों के साथ काम करती है, खासकर मराठवाड़ा के किसानों के साथ, जहां लगभग 30-40 प्रतिशत घरों की मुखिया महिलाएं हैं, जो अपने पति की मृत्यु (आत्महत्या सहित)के बाद, मुख्य कमाने वाली सदस्य होती हैं।

न्यूयॉर्क जलवायु सप्ताह जैसे बड़े आयोजनों में भाग लेने के लाभों के बारे में बताते हुए पंत ने कहा कि वह और उनकी टीम जलवायु अनुकूलन के लिए कार्य बिंदुओं की प्रतीक्षा कर रही है, ताकि ‘‘किसानों को जलवायु के प्रति लचीला बनाया जा सके और उन्हें गरीबी में वापस जाने से रोकने के लिए उनकी आय बढ़ाने में मदद की जा सके।’’

भाषा धीरज रंजन

रंजन

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)