घटते वैश्विक वित्तपोषण के बीच भारत को जलवायु कार्यवाही में लचीलेपन को प्राथमिकता देनी चाहिए: समीक्षा |

घटते वैश्विक वित्तपोषण के बीच भारत को जलवायु कार्यवाही में लचीलेपन को प्राथमिकता देनी चाहिए: समीक्षा

घटते वैश्विक वित्तपोषण के बीच भारत को जलवायु कार्यवाही में लचीलेपन को प्राथमिकता देनी चाहिए: समीक्षा

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Modified Date: January 31, 2025 / 05:19 PM IST
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Published Date: January 31, 2025 5:19 pm IST

नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) विकासशील देशों में जलवायु संबंधी कदमों में सहयोग के प्रति वैश्विक वित्तीय प्रतिबद्धताओं के लगातार घटते रहने के बीच भारत को अपनी तीव्र आर्थिक वृद्धि को सुरक्षित रखने के लिए जलवायु कार्यवाही में लचीलेपन पर अधिक ध्यान देना चाहिए। संसद में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा में यह कहा गया है।

यह आर्थिक समीक्षा इस मायने से अहम है क्योंकि भारत 2025 में होने वाले ‘कॉप 30 (जलवायु संबंधी शीर्ष निकाय)’ की तैयारी कर रहा है, जहां पेरिस समझौते के पक्षकार राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) का अपना अगला संस्करण प्रस्तुत करेंगे। भारत जलवायु परिवर्तन के प्रति सातवां सबसे संवेदनशील देश है।

इस दस्तावेज में कहा गया है, ‘‘ वित्तपोषण में कमी से जलवायु लक्ष्यों पर पुन:विचार करने की जरूरत पड़ सकती है।’’

दिसंबर 2023 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) को सौंपे गए भारत के प्रारंभिक अनुकूलन संवाद के अनुसार, देश का कुल अनुकूलन-संबंधी व्यय वित्त वर्ष 2016 में सकल घरेलू उत्पाद के 3.7 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में सकल घरेलू उत्पाद का 5.6 प्रतिशत हो गया।

रिपोर्ट में नवंबर 2024 में बाकू के ‘कॉप 29’ के परिणामों की आलोचना करते हुए कहा गया है कि 2035 तक प्रतिवर्ष 300 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने का लक्ष्य 2030 तक 5100-6800 हजार अरब अमेरिकी डॉलर की अनुमानित आवश्यकता का केवल एक अंश मात्र है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘यह उत्सर्जन में कमी लाने तथा विकासशील क्षेत्रों में संवेदनशील आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की जिम्मेदारी को पूरा करने में समृद्ध विकसित देशों की अपनी समान हिस्सेदारी निभाने की अनिच्छा को रेखांकित करता है।’’

दस्तावेज़ में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि विकसित देश अपने एनडीसी से लगभग 38 प्रतिशत पीछे रह गए हैं।

विश्व में सबसे कम प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक देशों में से एक होने के बावजूद, भारत नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार, विशेष रूप से ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों और महत्वपूर्ण खनिजों के स्रोत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है।

देश ने 2070 तक पूर्णत: शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है, तथा 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य रखा है।

रिपोर्ट में भारत के विविध भौगोलिक और कृषि-जलवायु परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र-विशिष्ट अनुकूलन कार्यों की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

भाषा राजकुमार पवनेश

पवनेश

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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)