नयी दिल्ली, 20 दिसंबर (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने कथित रूप से दहेज की मांग के कारण अपनी महिला की आत्महत्या के मामले में उसके पति और ससुराल वालों को बरी कर दिया और कहा कि यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि हर विवाहित महिला द्वारा की गई आत्महत्या उत्पीड़न के कारण ही होती है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल पाहुजा मृतक महिला के पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रहे थे।
इनके खिलाफ मालवीय नगर पुलिस थाने में दहेज हत्या और विवाहित महिला के साथ क्रूरता के दंडात्मक प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।
फैसला 18 दिसंबर को दिया गया जिसमें कहा गया, ‘अभियोजन पक्ष के गवाहों की खराब और दोषपूर्ण गवाही तथा रिकार्ड में ठोस सबूतों के अभाव के कारण, इस अदालत का मानना है कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को संदेह से परे साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है।’
इसने आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि वे संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं।
अभियोजन पक्ष के अनुसार इस जोड़े का विवाह फरवरी 2012 में हुआ था और पति के परिवार की क्रूरता और दहेज की मांग के कारण सितंबर में महिला को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा।
दिल्ली उच्च न्यायालय के 2010 के एक फैसले का हवाला देते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘ऐसा कोई अनुमान नहीं है कि विवाहित महिला द्वारा अपने ससुराल या माता-पिता के घर में की गई प्रत्येक आत्महत्या का कारण यह हो कि वह अपने पति या ससुराल वालों के हाथों उत्पीड़न झेल रही थी। जीवित मनुष्य विभिन्न कारणों से आत्महत्याएं करते हैं…’
अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘यह सर्वविदित कहावत है कि व्यक्ति झूठ बोल सकता है, लेकिन परिस्थितियां झूठ नहीं बोलतीं। इस मामले में मृतका की डायरी से स्पष्ट पता चलता है कि आरोपी मृतका से प्रेम करता था और मृतका भी उससे प्रेम करती थी तथा उसने (महिला) उसके (पति) या अन्य आरोपियों के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की थी।’
न्यायालय ने कहा कि विवाह के सात वर्ष के भीतर वैवाहिक घर में हुई अप्राकृतिक मृत्यु का तथ्य ही आरोपी व्यक्तियों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।
भाषा
शुभम नरेश
नरेश
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)