नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अपने उन आदेशों के कथित उल्लंघन के लिए अवमानना कार्यवाही शुरू करने संबंधी याचिका पर सुनवाई के लिए बृहस्पतिवार को सहमति जताई, जिसमें राज्य के अधिकारियों को मानव बस्तियों या फसल के पास आने वाले हाथियों को भगाने के लिए आग के गोले का इस्तेमाल करने से रोकने के लिए कहा गया था।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने पश्चिम बंगाल के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन बल प्रमुख) को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया और मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की।
याचिकाकर्ता प्रेरणा सिंह बिंद्रा ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत द्वारा एक अगस्त, 2018 और चार दिसंबर, 2018 को पारित आदेशों का हवाला दिया है, जिसमें मानव-वन्यजीव संघर्ष और विशेष रूप से मानव-हाथी संघर्ष के प्रबंधन के लिए कुछ राज्यों में इस्तेमाल किए जाने वाले क्रूर तरीकों को रेखांकित किया गया है।
अधिवक्ता शिबानी घोष के जरिये दायर अवमानना याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने एक अगस्त, 2018 के अपने आदेश में कहा था कि जहां भी हाथियों को भगाने के लिए कीलों या आग के गोलों का इस्तेमाल किया जाता है, उन संबंधित राज्यों को कीलों को हटाने और आग के गोलों का इस्तेमाल करने से बचने के लिए उपचारात्मक कदम उठाने चाहिए।
याचिका में कहा गया है, ‘इन दो आदेशों के माध्यम से, इस अदालत ने पश्चिम बंगाल सरकार को मानव बस्तियों और फसल के पास आने वाले हाथियों को भगाने के लिए आग के गोलों का इस्तेमाल करने से बचने के लिए स्पष्ट निर्देश जारी किए थे।’
इसमें कहा गया है कि शीर्ष अदालत द्वारा सीमित अवधि के लिए आपातकालीन उपाय के अलावा आग के गोलों या ‘मशालों’ का इस्तेमाल करने से बचने के स्पष्ट निर्देश के बावजूद, पश्चिम बंगाल में हाथियों को डराने और भगाने के लिए ऐसी ‘क्रूर और बर्बर तकनीकों’ के इस्तेमाल की प्रथा जारी है।
याचिका में 15 अगस्त, 2024 की उस घटना का हवाला दिया गया है, जब हाथियों का एक समूह पश्चिम बंगाल के झारग्राम शहर के बाहरी इलाके में एक कॉलोनी में घुस गया था। इसमें कहा गया है कि समूह के एक हाथी ने कथित तौर पर एक बुजुर्ग निवासी को मार डाला था।
याचिका में कहा गया है कि हाथियों को डराने के लिए ‘मशालों’, नुकीली धातु की छड़ों, आग के गोले, ज्वलनशील वस्तुओं आदि का प्रयोग अत्यंत क्रूर और बर्बर है तथा इससे पशु को अत्यधिक मानसिक आघात और शारीरिक कष्ट होता है।
भाषा सुरेश माधव
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