सिर्फ 18 महीने प्रधानमंत्री रहे, लेकिन सादगी और दृढ़ता से बने अमर | his simplicity in his 18-month-old tenure as Prime Minister has immortalised him

सिर्फ 18 महीने प्रधानमंत्री रहे, लेकिन सादगी और दृढ़ता से बने अमर

सिर्फ 18 महीने प्रधानमंत्री रहे, लेकिन सादगी और दृढ़ता से बने अमर

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:51 PM IST
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Published Date: January 11, 2018 6:07 am IST

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उनकी पुण्यतिथि पर आज पूरा देश नमन कर रहा है। भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री की छवि भारतीय जनमानस में एक ऐसे महान राजनेता की है, जो सादगी, सौम्यता, शुचिता की मिसाल थे। इसके अलावा उनमें देशहित में कठोर और साहसिक फैसले लेने की ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति थी, जो विरले ही देखने को मिलती है। 

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लाल बहादुर शास्त्री 9 जून 1964 से लेकर 11 जनवरी 1966 तक यानी करीब डेढ़ साल ही देश के प्रधानमंत्री के पद पर रहे, लेकिन उनका ये कार्यकाल अद्वितीय है, अविस्मरणीय है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। आज़ादी मिलने के बाद लाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय राजनीति में नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश में संसदीय सचिव बनाए गए थे।

  

 

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यूपी में बनी तत्कालीन गोविंद बल्लभ पंत सरकार में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मंत्रालय सौंपा गया था। पुलिस लाठीचार्ज को बंद कराकर पानी की बौछार से भीड़ नियंत्रण करना उनके इसी कार्यकाल के दौरान का एक प्रयोग था, जिसके पीछे सोच ये थी कि देश की जनता को अपनी आवाज़ सरकार के सामने रखने के दौरान दमन का सामना न करना पड़े, चोटिल न होना पड़े। 1951 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वे कांग्रेस महासचिव बने और 27 मई 1964 को नेहरू के निधन के बाद उन्हें देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया गया।

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उनके शासन में 1965 में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था। भारत इससे पहले चीन के हाथों पंडित नेहरू के कार्यकाल में बुरी तरह युद्ध हारने के कारण हतोत्साहित था, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री ने अदभुत राजनीतिक दृढ़ता और आदर्श नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाते हुए जय जवान, जय किसान के नारे के साथ पूरे देश को एकसूत्र में बांध दिया।

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उनके साहसिक नेतृत्व ने इस युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी और ताशकंद समझौता हुआ। ताशकंद में ही पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के साथ समझौता पत्र पर हस्ताक्षर के बाद 11 जनवरी 1966 की रात को उनका निधन हो गया। बाद में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

 

वेब डेस्क, IBC24