उच्च न्यायालय ने खारिज की सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका, मामले को बड़ी बेंच को भेजा |

उच्च न्यायालय ने खारिज की सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका, मामले को बड़ी बेंच को भेजा

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Modified Date: July 1, 2023 / 10:06 PM IST
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Published Date: July 1, 2023 10:04 pm IST

High Court rejects bail plea of ​​social activist Teesta Setalvad: अहमदाबाद, एक जुलाई । गुजरात उच्च न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की एक मामले में नियमित जमानत याचिका शनिवार को खारिज कर दी और उन्हें तत्काल आत्मसमर्पण करने को कहा।

अदालत ने टिप्पणी की कि सीतलवाड़ ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने और तत्कालीन मुख्यमंत्री व मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि धूमिल कर उन्हें जेल भेजने की कोशिश की।

न्यायमूर्ति निर्झर देसाई की अदालत ने 2002 के गोधराकांड के बाद हुए दंगों में ‘निर्दाेष लोगों’ को फंसाने के लिए साक्ष्य गढ़ने से जुड़े एक मामले में सीतलवाड़ की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा कि उनकी रिहाई से गलत संदेश जाएगा कि लोकतांत्रिक देश में सब कुछ उदारता होता है।

अदालत ने मौजूदा समय में अंतरिम जमानत पर रिहा सीतलवाड़ को तत्काल आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। अदालत ने फैसला सुनाए जाने के बाद सीतलवाड़ के वकील की ओर से 30 दिन तक आदेश के अमल पर रोक लगाने के अनुरोध को भी मानने से इनकार कर दिया।

अहमदाबाद पुलिस की अपराध शाखा द्वारा दर्ज एक मामले में सीतलवाड़ को पिछले वर्ष 25 जून को गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के साथ गिरफ्तार किया था। सीतलवाड़ और अन्य पर गोधरा कांड के उपरांत हुए दंगों के पश्चात ‘निर्दाेष लोगों’ को फंसाने के लिए साक्ष्य गढ़ने का आरोप हैं। उन्हें दो सितंबर 2022 को उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम जमानत दी थी।

फैसले में अदालत ने टिप्पणी की कि प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि सीतलवाड ने अपने करीबी सहयोगियों और दंगा पीड़ितों का इस्तेमाल ‘‘उच्चतम न्यायालय में तत्कालीन सरकार को अपदस्थ करने और संस्थान एवं उस समय के मुख्यमंत्री (मोदी) की छवि धूमिल करने के मकसद से झूठा और मनगढ़ंत हलफनामा दाखिल करने में किया।’’

अदालत ने कहा कि अगर आज किसी राजनीतिक दल ने उन्हें कथित तौर पर (तत्कालीन) सरकार को अस्थिर करने का कार्य दिया था तो कल ‘‘ कोई बाहरी ताकत भी इसी तरह का कार्य करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति का इस्तेमाल कर सकती है जो देश और किसी खास राज्य के लिए खतरा पैदा कर सकती है।’’

अदालत ने कहा कि उन्हें रिहा करने पर गलत संदेश जाएगा कि लोकतांत्रिक देश में सबकुछ इतना उदार होता है कि ‘‘यहां तक कि तत्कालीन प्रतिष्ठान (सरकार) को अपदस्थ करने और तत्कालीन मुख्यमंत्री की छवि धूमिल कर जेल भिजवाने की कोशिश करने वाला व्यक्ति भी जमानत पर रिहा हो सकता है।’’

अदालत ने कहा कि इससे ‘‘अन्य भी इसी तरह का कार्य करने के लिए प्रेरित हो सकते हैं।’’

अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि पद्मश्री से सम्मानित और योजना आयोग की पूर्व सदस्य सीतलवाड़ ने ‘‘ ऐसा महौल बनाने की कोशिश की ताकि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अस्थिर किया जा सके और तब के मुख्यमंत्री की छवि धूमिल की जाए ताकि वे जेल जाए।’’

फैसले में अदालत ने कहा कि उन्होंने (सीतलवाड़ ने)दंगा पीड़ितों की मदद निजी और राजनीतिक लाभ की मंशा से की। उन्होंने सामाजिक नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए चंदे के रूप में बड़ी राशि जमा की और अंततरू योजना आयोग की सदस्य बनीं।

अदालत ने कहा कि गवाहों के बयान से संकेत मिलते हैं कि सीतलवाड़ ने झूठा हलफनामा बनाया और पीड़ितों को राजी किया कि वे उसे उच्चतम न्यायालय एवं अन्य मंचों में दाखिल करें और निर्दाेष का नाम लें ताकि उनके अपने और दिवंगत कांग्रेस नेता अहमद पटेल के निजी और राजनीतिक एजेंडे की पूर्ति की जा सके।

उच्च न्यायालय ने कहा कि उन्होंने लोगों को भड़का कर,झूठे और मनगढ़ंत हलफनामे दाखिल करके और यहां तक कि यूएनएचआरसी (संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद) को पत्र लिखकर माननीय उच्चतम न्यायालय सहित विभिन्न मंचों को गुमराह किया और शांति भंग करने के लिए एक विशेष संप्रदाय के लोगों का ध्रुवीकरण करने का काम किया। इसके लिए उन्हें माननीय सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा चेतावनी दी गई थी।’’

अदालत ने कहा कि सीतलवाड ने बिना किसी आधार के मुकदमे दायर किए और गवाहों को ‘‘निर्दाेष व्यक्तियों को फंसाने और सरकार को अस्थिर करने और तत्कालीन माननीय मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल करने के इरादे से उच्चतम न्यायालय सहित विभिन्न मंचों पर झूठे हलफनामे दाखिल करने के लिए मजबूर किया ताकि मुख्यमंत्री जेल जाए और इस्तीफा देने को मजबूर हों।’’

अदालत ने कहा कि सीतलवाड़ के प्रति किसी तरह की नरमी बरतने से लोग किसी निकाय के गैर कानूनी और अवैध एजेंडे को समुदाय की भावनाओं के साथ खेलकर या मनोस्थिति में बदलाव कर पूरा करने में मदद को प्रेरित होंगे ताकि किसी विशेष दल के पक्ष में माहौल बन सके।

अदालत ने टिप्पणी की, ‘‘ प्रथम दृष्टया इस अदालत का रुख है कि अगर इस तरह के आवेदक को जमानत पर रिहा करने की छूट दी गई तो इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और गहरा होगा।’’

अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने 30 जुलाई 2022 को मामले में सीतलवाड़ और श्रीकुमार की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी थीं और कहा था कि उनकी रिहाई से गलत काम करने वालों को यह संदेश जाएगा कि एक व्यक्ति आरोप भी लगा सकता है और उसका दोष माफ भी किया जा सकता है।

उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष दो सितंबर को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की अंतरिम जमानत मंजूर कर ली थी। साथ ही पीठ ने सीतलवाड़ को गुजरात उच्च न्यायालय में नियमित जमानत याचिका पर निर्णय होने तक अपना पासपोर्ट निचली अदालत के पास जमा कराने का निर्देश दिया था।

सीतलवाड़ तीन सितंबर को जेल से बाहर आ गई थी।

गौरतलब है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा के निकट साबरमती एक्सप्रेस का एक कोच जलाये जाने की घटना में अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवक मारे गये थे, जिसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गये थे।

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