High Court on Live in relationship

High Court on Live in relationship: ऐसे लिव-इन-रिलेशनशिप जोड़े को नहीं मिलेगी सुरक्षा.. हाईकोर्ट ने कहा, ‘सामाजिक मूल्यों के खिलाफ है…’

यह फैसला विवाह की पवित्रता और भारतीय समाज में उसके महत्व को बनाए रखने का संदेश देता है। कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत अधिकारों का उपयोग सामाजिक और कानूनी मर्यादा का पालन करते हुए ही किया जाना चाहिए।

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Modified Date: January 1, 2025 / 08:39 PM IST
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Published Date: January 1, 2025 8:39 pm IST

High Court on Live in relationship: चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उस लिव-इन जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने से इनकार कर दिया, जिसमें पुरुष पहले से ही शादीशुदा था और उसके बच्चे भी थे। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि इस प्रकार के मामलों में संरक्षण देना सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ होगा और गलत कार्यों को बढ़ावा देगा।

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अनुच्छेद 21 के अधिकार पर कोर्ट की व्याख्या

जस्टिस संदीप मौदगिल ने अपने फैसले में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा कि हर नागरिक को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है। हालांकि, यह अधिकार कानून की सीमाओं में होना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि ऐसे मामलों को मंजूरी दी जाती है, तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत दंडनीय अपराध, द्विविवाह, को प्रोत्साहन देने के समान होगा।

लिव-इन रिलेशनशिप और सामाजिक प्रभाव

High Court on Live in relationship: कोर्ट ने यह कहते हुए कड़ा रुख अपनाया कि एक विवाहित व्यक्ति का लिव-इन रिलेशनशिप में रहना सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है। ऐसे संबंधों को वैध मानने से समाज में परिवार के महत्व और गरिमा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के रिश्ते माता-पिता और परिवार की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाते हैं।

विवाह: समाज का आधार

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में विवाह को एक पवित्र और सामाजिक रूप से अहम रिश्ता बताया। जस्टिस मौदगिल ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों के बीच का संबंध नहीं है, बल्कि यह सामाजिक स्थिरता और नैतिक मूल्यों की नींव है। उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवनशैली और पश्चिमी संस्कृति को अपनाने से भारतीय पारिवारिक और सांस्कृतिक मूल्य कमजोर हो रहे हैं।

भारतीय संस्कृति और पश्चिमी प्रभाव

High Court on Live in relationship: कोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह को कानूनी, सामाजिक और नैतिक महत्व दिया गया है। यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों का हिस्सा है। हालांकि, आधुनिक जीवनशैली और पश्चिमी संस्कृति का बढ़ता प्रभाव हमारे नैतिक और पारिवारिक मूल्यों को कमजोर कर रहा है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दुरुपयोग करके सामाजिक ताने-बाने को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए।

संरक्षण याचिका पर निर्णय

याचिका दायर करने वाले जोड़े ने दावा किया कि उन्हें अपने रिश्तेदारों से जान का खतरा है। हालांकि, हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत कोई भी शादीशुदा व्यक्ति अवैध संबंध के लिए संरक्षण की मांग नहीं कर सकता।

High Court on Live in relationship: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का यह फैसला भारतीय समाज में विवाह की पवित्रता और महत्व को बनाए रखने के लिए एक मजबूत संदेश है। यह फैसला इस बात पर जोर देता है कि व्यक्तिगत अधिकारों का उपयोग समाज और कानून की मर्यादा में रहकर ही किया जाना चाहिए।

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1. हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप वाले जोड़े को सुरक्षा क्यों नहीं दी?

हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि यदि कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा है, तो उसका लिव-इन रिलेशनशिप में रहना सामाजिक और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है। ऐसा करने से परिवार और समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

2. क्या यह फैसला सभी लिव-इन रिलेशनशिप पर लागू होता है?

नहीं, यह फैसला विशेष रूप से उन मामलों पर केंद्रित है, जहां पुरुष या महिला पहले से शादीशुदा है। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में संरक्षण देना भारतीय दंड संहिता की धारा 494 (द्विविवाह) का उल्लंघन होगा।

3. कोर्ट ने भारतीय संस्कृति और विवाह को लेकर क्या कहा?

हाईकोर्ट ने विवाह को भारतीय समाज का आधार बताया और कहा कि यह केवल दो व्यक्तियों का संबंध नहीं है, बल्कि सामाजिक स्थिरता और नैतिक मूल्यों की नींव है। कोर्ट ने पश्चिमी जीवनशैली के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त की, जो भारतीय पारिवारिक मूल्यों को कमजोर कर सकता है।

4. क्या ऐसे मामलों में अनुच्छेद 21 का उपयोग किया जा सकता है?

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21 के तहत सभी को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है, लेकिन यह कानून और सामाजिक मर्यादा के तहत ही होना चाहिए। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उपयोग समाज के नैतिक ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचा सकता।

5. हाईकोर्ट का यह फैसला समाज के लिए क्या संदेश देता है?

यह फैसला विवाह की पवित्रता और भारतीय समाज में उसके महत्व को बनाए रखने का संदेश देता है। कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत अधिकारों का उपयोग सामाजिक और कानूनी मर्यादा का पालन करते हुए ही किया जाना चाहिए।

 

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