नई दिल्ली। देश में एक राज्य ऐसा है जहां दिवाली साल में दो बार मनाई जाती है। आपको बता दें कि पूरे देश में वाराणसी एक मात्र ऐसी जगह है, जहां 1 नहीं बल्कि 2 बार दीपावली मनाई जाती है। इसमें से एक दिवाली का संबंध इंसानों से है तो वहीं दूसरी दीपावली देवताओं की होती है, जिसे लोग देव दीपावली के नाम से जानते हैं।
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दीपों का यह महापर्व कार्तिक मास के बाद कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस साल यह पावन पर्व 19 नवंबर 2021 को मनाया जाएगा। देव दीपावली के दिन जब वाराणसी में गंगा के घाटों के किनारे जब लाखों दीये एक साथ जलते हैं तो मानो ऐसा लगता है कि आसमान से सारे देवी-देवता पृथ्वी पर उतर आए हों।
काशी में देवताओं के धरा पर उतरने का पर्व देव दीपावली मनाने की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। सिर्फ 12 दिन और शेष बचे हैं जब दीपों की रोशनी से एक साथ 84 गंगा घाट जगमगा उठेंगे। दीपों की दमक से पहले काशी में पर्यटन उद्योग से जुड़े व्यवसायियों के चेहरे खिल उठे हैं। दरअसल, देव दीपावली के मद्देनजर जहां होटलों की बुकिंग फुल हो चुकी है। वहीं तीन घंटे के लिए ढाई से तीन लाख रुपये में बजड़े की बुकिंग हो रही है।
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देव दीपावली के दिन नदी के किनारे दीये जलाने का बहुत महत्व है। यही कारण है कि इस दिन वाराणसी के सभी घाट दीये से जगमग करते नजर आते हैं, जिसे देखने के लिए लोग हर साल देश-विदेश से वाराणसी पहुंचते हैं। देव दीपावली के भव्य नजारे को देखने और अपने कैमरे में कैद करने के लिए लोग महीनों पहले से होटल और नावों की बुकिंग करवा लेते हैं। रोशनी से सराबोर गंगा के घाटों को देखकर हर आदमी उसी में खो जाता है और गंगा की शीतलता और पवित्रता में डूब जाना चाहता है।
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पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था, इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं. इसी उपलक्ष्य में बाबा विश्वनाथ की नगरी में बड़े धूमधाम से दीपावली मनाई जाती है. इसके अलावा मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर ही भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार भी लिया था। इसी दिन सिख गुरु नानक देव जी का जन्म भी हुआ था। इसलिए इस दिन को नानक पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं। साथ ही देव दीपावली के दिन तुलसी जी और भगवान शालिग्राम की भी विशेष पूजा की जाती है।
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