नयी दिल्ली, 31 मार्च (भाषा) जबतक व्यापक जनहित में जरूरी न हो तब तक सरकार की ओर से निगरानी किये जाने को अस्वीकार्य करार देते हुए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जे. चेलमेश्वर ने शुक्रवार को कहा कि नागरिकों की निगरानी को विनियमित करने के लिए एक तर्कसंगत कानूनी प्रणाली बनाने के लिए माननीयों और संसद पर ‘लोकतांत्रिक दबाव’ बनाये जाने की ज्यादा जरूरत है।
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा कि सरकार के पास परिस्थितियों के आधार पर निगरानी करने के कारण होते हैं, लेकिन ‘प्रक्रिया में पारदर्शिता’ होनी चाहिए।
वह गैर-सरकारी संगठनों- ‘कॉमन कॉज’ और ‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस)’ द्वारा ‘स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2023: सर्विलांस एंड द क्वेश्चन ऑफ प्राइवेसी’ रिपोर्ट जारी किये जाने को लेकर आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे।
पूर्व न्यायाधीश ने जांच एजेंसियों, विशेष रूप से केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की निगरानी और दुरुपयोग पर कहा कि यह खतरा सत्ता में राजनीतिक दलों के निरपेक्ष है तथा अब इसे लेकर शोर मचाने वाली पार्टी ने केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक प्रणाली विकसित करने के वास्ते 40 वर्षों में कुछ नहीं किया।
उन्होंने कहा, “जब मैं सरकारों के बारे में बात करता हूं, तो मैं किसी राजनीतिक दल के बारे में बात नहीं करता। किसी भी राजनीतिक दल की सरकार हो, ‘हार्डवेयर’ में बदलाव होता है, ‘सॉफ्टवेयर’ वही होता है। हर कोई समान प्रथाओं का पालन करता है।”
उन्होंने कहा, ‘‘हाल के दिनों में हम सरकारी एजेंसियों, विशेष रूप से सीबीआई के दुरुपयोग की बहुत सारी शिकायतें सुन रहे हैं और जो राजनीतिक दल अब सीबीआई के दुरूपयोग पर शोर मचा रहा है, उसने पहले करीब 40 साल तक इस देश को चलाया। उन्होंने कभी भी इस सीबीआई को और अधिक स्थिर, वैधानिक एवं तर्कसंगत बनाये रखने की जहमत नहीं उठाई और आज, वे पाते हैं कि वर्तमान व्यवस्था इसका दुरुपयोग कर रही है। यह अपनी-अपनी राय है। मैं इसमें नहीं जा रहा हूं।’
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा कि सरकार के पास डेटा एकत्र करने और परिस्थितियों के आधार पर व्यक्तियों या समूहों के कुछ वर्गों पर निगरानी रखने के कारण मौजूद होते हैं, लेकिन प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए।
उन्होंने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की पूर्ववर्ती सरकार के दौरान कथित तौर पर एक मंत्री के कार्यालय की जासूसी से संबंधित विवाद का जिक्र किया। यह मामला दो कैबिनेट मंत्रियों से जुड़ा था, जिनमें से एक की मौत हो चुकी है।
पूर्व न्यायाधीश ने कहा, ‘निगरानी तब तक अस्वीकार्य है, जब तक यह स्थापित नहीं हो जाता कि वे पूरी तरह से जनहित में हैं।”
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि ‘दुर्भाग्य से’ पुराने टेलीग्राफ अधिनियम में संशोधन किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और जैव-प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति हुई है, जो सभी मान्यता से परे दुनिया को बदलने जा रहे हैं।
भाषा सुरेश सुरेश दिलीप
दिलीप
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
दिल्ली : चालक और एक अन्य व्यक्ति से विवाद के…
50 mins ago