सरकार निजीकरण से जुटाएगी पूंजी, सुविधाएं बढ़ेंगी, आम आदमी की जेब कटना तय | Government will raise capital through privatization Facilities will increase

सरकार निजीकरण से जुटाएगी पूंजी, सुविधाएं बढ़ेंगी, आम आदमी की जेब कटना तय

सरकार निजीकरण से जुटाएगी पूंजी, सुविधाएं बढ़ेंगी, आम आदमी की जेब कटना तय

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:59 PM IST, Published Date : December 25, 2020/9:44 am IST

नई दिल्ली । भारत में केंद्र सरकार तेजी से निजीकरण के तरफ बढ़ी है।  निजीकरण का मतलब समझना जरुरी है, इसका तात्पर्य ऐसी व्यवस्था से है जिसमें किसी विशेष सार्वजनिक संपत्ति अथवा कारोबार का स्वामित्व सरकारी संगठन से हस्तांरित कर किसी निजी संस्थान को दे दिया जाता है। । हाल के दिनों में मोदी सरकार 26 कंपनियों को प्राइवेट हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। भारतीय रेलवे के साथ भी यह प्रयोग करने की कोशिशें हुई हैं, जिसने कुछ वर्गों को आक्रोशित करने का कार्य किया है, जबकि कुछ एक वर्ग सरकार के इस कदम से प्रभावित भी हुए हैं।

देश की अर्थव्यवस्था से लेकर सामान्य जन-जीवन को निजीकरण कैसे प्रभावित करेगा यह समझना ज़रूरी है। भारत के लिए यह निजीकरण कितना अच्छा है या कितना बुरा है इस पर मंथन करना आवश्यक है।

ये भी पढ़ें- बाराती गाड़ी को रुकवाकर बदमाशों ने दूल्हा-दुल्हन को मारी गोली, सुहाग…

भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटे़ड से लेकर एयर इंडिया, बीएसएनएल और एक हद तक रेलवे  के निजीकरण को लेकर अकसर ही खबरें आती रहती हैं, लेकिन पुख्ता जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार कुल 26 कंपनियों के निजीकरण की तैयारी में है। इन कंपनियों में पवन हंस लिमिटेड से लेकर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड तक शामिल हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण,  23 पीएसयू के निजीकरण का ऐलान कर चुकी हैं, एक आरटीआई में 26 कंपनियों के प्राइवेटाइजेशन का खुलासा हुआ है। सरकार जिन कंपनियों का निजीकरण करने जा रही है, उनमें कई ऐसी कंपनियां भी हैं, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी अब बेहद कम हो गई है।

जानकारी के मुताबिक सरकार जिन कंपनियों का निजीकरण करने जा रही है उनमें एयर इंडिया, सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, इंजीनियरिंग प्रोजेक्टस इंडिया लिमिटेड, पवन हंस, बीएंडआर, प्रोजेक्ट एंड डिवेलपमेंट इंडिया लिमिटेड, सीमेंट कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड, इंडियन मे़डिसिन एंड फार्मास्युटिक्स, सलेम इंडिया प्लांट, फेरो स्क्रैप निगम लिमिटेड जैसी कंपनियां शामिल हैं। यही नहीं छत्तीसगढ़ के नगननार स्टील प्लांट का भी सरकार निजीकरण करने जा रही है। बता दें कि इस प्लांट के निजीकरण के विरोध में ही हाल ही में छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। उन्होंने कहा था कि इससे आदिवासी समाज को काफी उम्मीदें हैं और इसका निजीकरण किए जाने से माओवादियों को बढ़ावा मिलेगा।

ये भी पढ़ें- धमतरी का अनोखा इंसान, घने जंगलों के बीच 50 सालों से रह रहा अकेला, ब…

इसके अलावा भारत अर्थमूवर्स लिमिटेड, एचएलएल लाइफकेयर, भारत पेट्रोलियम, शिपिंग कॉर्पोरेशन, कन्टेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, नीलांचल इस्पात लिमिटेड, हिंदुस्तान प्रीफेब लिमिटेड भी निजीकरण की लिस्ट में शामिल हैं। यही नहीं भारत पम्पस एंड कम्प्रेशर लिमिटेड, स्कूटर्स इंडिया, हिंदुस्तान न्यूजप्रिंट, कर्नाटक एंट्रीबायोटिक्स, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स, इंडिया टूरिज्म डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन और हिंदुस्तान फ्लूरोकार्बन लिमिटेड शामिल हैं।

वहीं सरकार ने एलआईसी में हिस्सेदारी बेचने के अलावा bpcl और एयर इंडिया में सरकार ने निजीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
 पेट्रोलियम कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) के संभावित खरीददरों के लिए कर्मचारियों के हित की रक्षा, कंपनी को संपत्ति विहिन करने से बचने तथा व्यवसाय को जारी रखने की निरंतरता को लेकर परामर्श बाद के चरण में जारी करेगी। विनिवेश विभाग के द्वारा जारी निजीकरण नियमों में इसकी जानकारी मिली है। केंद्र सरकार बीपीसीएल में अपनी पूरी 52.98 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने वाली है। बीपीसीएल भारत की दूसरी सबसे बड़ी  ईंधन विक्रेता व तीसरी सबसे बड़ी कच्चा तेल परिशोधन कंपनी है।
ये भी पढ़ें- भारत के न्यूनतम टेस्ट स्कोर पर विश्व क्रिकेट की प्रतिक्रिया- भूलने …

ऐसा माना जा रहा है कि बीपीसीएल के निजीकरण में श्रम कानून से संबंधित प्रावधान महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। कंपनी का एक संभावित खरीदार बाद में अतिरिक्त कर्मचारियों की छंटनी कर सकता है, जो कि किसी भी सार्वजनिक कंपनी के साथ सामान्य है। इसके अलावा खरीदार कुछ संपत्तियों जैसे भूखंड व भवन आदि की बिक्री भी करना चाह सकते हैं। बीपीसीएल के खरीदार को तत्काल भारत की परिशोधन सीमा में 15.33 प्रतिशत और ईंधन बाजार में 22 प्रतिशत हिस्सेदारी प्राप्त हो जायेगी। सरकारें हमेशा घाटा से उबरने के लिए कंपनियों को निजी हाथों में सौंपती है, लेकिन  बीपीसीएल तो हर वर्ष हजारों करोड़ का मुनाफा कमाती है, बावजूद इसके उसे बेचा जा रहा है। 

 देश की लाइफ लाइन कही जाने वाली रेलवे के भी निजीकरण की चर्चाएं जोरो पर हैं। बता दें कि  भारत में व्यावसायिक ट्रेन यात्रा की शुरुआत वर्ष 1853 में हुई थी जिसके बाद वर्ष 1900 में भारतीय रेलवे तत्कालीन सरकार के अधीन आ गई थी। भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा सहयोग इसी क्षेत्र का है। साल 1925 में बॉम्बे से कुर्ला के बीच देश की पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन चलाई गई। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात् भारत को एक पुराना रेल नेटवर्क विरासत में मिला मगर पूर्व में विकसित लगभग 40 प्रतिशत रेल नेटवर्क पाकिस्तान के हिस्से में चला गया।तब रेलवे के विकास के लिए कुछ लाइनों की मरम्मत की गई और कुछ नई लाइने बिछाई गई ताकि जम्मू व उत्तर-पूर्व भारत के कुछ क्षेत्रों को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ा जा सके। रेलवे से आम लोग सीधे जुड़े हैं, निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए ट्रेन सर्वाधिक पसंदीदा साधन है। यदि इसे पूर्णत व्यवसायिक कर दिया जायेगा, तो संभव है कि एक बड़ा वर्ग यात्रा के विकल्पों से महरुम हो जाए।

ये भी पढ़ें- दो एकड़ खेत का मालिक किसान रातोंरात बना लखपति, खुदाई के दौरान मिला …

आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने इस साल बजट में विनिवेश का टारगेट 2.1 लाख करोड़ रुपये रखा है। सरकार बजट घाटा पाटने की कवायद में जुटी है, इसके लिए सरकार को भारी पूंजी की जरुरत है, यही वजह है कि सरकार अपने संस्थानों को बेचकर ये पूंजी जुटाने की कवायद कर रही है। देश को गरीबी से निकालने में यह कदम कारगर हो सकता है, लेकिन इसके दुष्परिणाम आम लोगों को झेलने पड़ेंगे । खासतौर पर मध्यम वर्ग इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होगा । दरअसल जैसे ही सार्वजनिक के संसाधन प्रायवेट हाथ में जाएंगे, ये एक समय के बाद अपनी मनमानी शुरु कर देंगे। जैसा कि अभी देखने को मिल रहा है, प्रायवेट हवाई सेवाएं देने वाली कंपनियां मनमुताबिक रेंट वसूलती है, यात्रा रद्द हो जाने पर भी रिफंड देने में आनाकानी करती हैं। निजीकरण की तरफ बढ़ते देश में भले ही  जल्द संकट दिखाई ना दें, लेकिन प्रतिस्पर्धा के अभाव में आम आदमी की जेब कटना तय है।