नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने गोवा पीठ में अदालत के कर्मचारियों की भर्ती एवं सेवाओं से संबंधित बम्बई उच्च न्यायालय के नियमों में बदलाव करने के राज्य सरकार के फैसले का बचाव करने पर गोवा के मुख्य सचिव को बृहस्पतिवार को फटकार लगायी ।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अगली सुनवाई की तारीख पर गोवा के मुख्य सचिव को वर्चुअल मोड में अदालत के समक्ष पेश होने को कहा, साथ ही उनसे उनके आचरण के बारे में स्पष्टीकरण मांगा।
पीठ ने गोवा सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता से कहा, ‘‘क्या हमें उन्हें सबक सिखाने की जरूरत है। यह बेशर्मी भरा कृत्य है। वह उन नियमों का बचाव करने के लिए पूरी तरह आश्वस्त हैं, जिन्हें वापस ले लिया जाना चाहिए। हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वह उनका (नियमों का) बचाव कर रहे हैं।’
शीर्ष अदालत ने इस तथ्य पर आपत्ति जताई कि गोवा पीठ के अधिकारियों और कर्मचारियों के सदस्यों की स्थापना (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम 2023 को प्रकाशित करने से पहले बम्बई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श नहीं किया गया था।
पीठ उच्च न्यायालय के पूर्व कर्मचारियों द्वारा अपनी सेवानिवृत्ति के वर्षों बाद भी पेंशन लाभ सहित अन्य बकाये का भुगतान न किए जाने पर किए गए अभ्यावेदन के आधार पर स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रही थी।
राज्य सरकार के वकील अभय अनिल अंतुरकर ने विशिष्ट निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा, लेकिन पीठ ने कहा कि वह राज्य के मुख्य सचिव से खुद यह स्पष्ट करने के लिए कहेगी कि नियमों को वापस क्यों नहीं लिया गया और उन्हें बम्बई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नाम से क्यों प्रकाशित किया गया।
राज्य की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह न तो नियमों का बचाव कर रहे हैं और न ही कार्रवाई का और उन्होंने त्रुटि को सुधारने के लिए कुछ समय मांगा।
पीठ ने कहा कि यह एक निर्लज्ज कृत्य है कि नियमों में बदलाव किया गया और उन्हें उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नाम से प्रकाशित किया गया।
इसने कहा कि न्यायालय को उम्मीद थी कि 24 जुलाई के आदेश के बाद त्रुटि को सुधारा जा सकता था, क्योंकि इसमें स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया था कि यह प्रथम दृष्टया कानून की स्थापित स्थिति के विरुद्ध है।
पीठ ने मामले को 22 नवंबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
शीर्ष न्यायालय ने 24 जुलाई को गोवा सरकार को अपनी त्रुटि सुधारने का अवसर दिया। पीठ ने इस कृत्य को ‘इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून का स्पष्ट उल्लंघन’ बताया।
भाषा सुरेश रंजन
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