तीन उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने 'एक देश, एक चुनाव' का विरोध किया : कोविंद रिपोर्ट |

तीन उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने ‘एक देश, एक चुनाव’ का विरोध किया : कोविंद रिपोर्ट

तीन उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने 'एक देश, एक चुनाव' का विरोध किया : कोविंद रिपोर्ट

:   Modified Date:  September 18, 2024 / 08:00 PM IST, Published Date : September 18, 2024/8:00 pm IST

नयी दिल्ली, 18 सितंबर (भाषा) पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा विचार-विमर्श के दौरान ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार पर आपत्ति जताने वालों में तीन उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और एक पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त भी शामिल थे।

कोविंद समिति की रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने हालांकि उच्चतम न्यायालय के जिन चार पूर्व प्रधान न्यायाधीशों-न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोब्डे और न्यायमूर्ति यूयू ललित से परामर्श किया था, उन्होंने लिखित जवाब दिए जो एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में थे।

बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकार की गई रिपोर्ट में पहले कदम के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की गई है, जिसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराए जाने की सिफारिश की गई है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह ने एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा का विरोध किया था और कहा था कि इससे लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति पर अंकुश लग सकता है, साथ ही विकृत मतदान पैटर्न और राज्य स्तरीय राजनीतिक बदलावों की चिंता भी बढ़ गई है।

खबर में कहा गया, “इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से राजनीतिक जवाबदेही में बाधा आती है, क्योंकि निश्चित कार्यकाल प्रतिनिधियों को प्रदर्शन की जांच के बिना अनुचित स्थिरता प्रदान करता है, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों को चुनौती देता है।”

कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गिरीश चंद्र गुप्ता ने एक साथ चुनाव कराने का विरोध करते हुए कहा कि यह विचार लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है।

रिपोर्ट में कहा गया, “मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी ने एक साथ चुनाव कराने का विरोध किया, क्योंकि उन्हें चिंता थी कि इससे भारत का संघीय ढांचा कमजोर होगा और क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।”

इसमें कहा गया है, “उन्होंने अनुभवजन्य आंकड़ों का हवाला देते हुए राज्यों में बार-बार मध्यावधि चुनाव होने की बात कही और लोगों को उनकी पसंद का नेता चुनने की अनुमति देने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने भ्रष्टाचार और अक्षमता से निपटने के लिए चुनावों को राज्य द्वारा वित्तपोषित किए जाने को अधिक प्रभावी सुधार बताया।”

समिति ने जिन चार पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्तों से विमर्श किया, उन सभी ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया।

समिति द्वारा जिन वर्तमान और पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्तों से परामर्श किया गया, उनमें से सात ने इस विचार का समर्थन किया, जबकि तमिलनाडु के पूर्व निर्वाचन आयुक्त वी पलानीकुमार ने चिंता व्यक्त की।

रिपोर्ट में कहा गया है, “एक प्राथमिक चिंता यह थी कि चुनावों के दौरान स्थानीय मुद्दों की तुलना में राष्ट्रीय मुद्दों का व्यापक प्रभुत्व होता है। आयुक्त ने आशंका व्यक्त की कि इस प्रवृत्ति से क्षेत्र-विशिष्ट चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करने में कमी आ सकती है और स्थानीय शासन की प्रभावशीलता कम हो सकती है।”

रिपोर्ट में कहा गया है, “इसके अलावा, आयुक्त ने चुनाव कार्यबल की कमी के गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डाला, और चुनावों के निर्बाध एवं कुशल निष्पादन को सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।”

भाषा प्रशांत पारुल

पारुल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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