नई दिल्लीः कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं और किसान आंदोलने से जुड़े याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है और एक कमेटी का गठन करने का आदेश दिया है। वहीं, दूसरी ओर किसानों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी कानून वापसी की मांग को लेकर प्रदर्शन जारी रखने का ऐलान किया है। इससे पहले कोर्ट में सुनवाई के दौरान किसानों की ओर ेसे पेश हुए वकील एमएल शर्मा ने कहा कि किसानों का कहना है कि कई व्यक्ति चर्चा के लिए आए थे, लेकिन इस बातचीत के जो मुख्य व्यक्ति हैं, प्रधानमंत्री नहीं आए। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम प्रधानमंत्री को नहीं कह सकते कि आप मीटिंग में जाओ। वह इस केस में कोई पार्टी नहीं हैं।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बनाने की बात पर जोर देते हु कहा कि कमेटी हम बनाएंगे ही, दुनिया की कोई ताकत उसे बनाने से हमें नहीं रोक सकती है। हम जमीनी स्थिति समझना चाहते हैं। इसके बाद अटार्नी जनरल ने कहा कि कमेटी अच्छा विचार है हम उसका स्वागत करते हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने हरीश साल्वे के आरोप पर ध्यान दिया, जिसमें कहा गया है कि प्रतिबंधित संगठन इस प्रदर्शन को फंडिंग कर रहे हैं। इसका उल्लेख अदालत के समक्ष एक याचिका में किया गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एजी वेनुगोपाल से पूछा- क्या आप कन्फर्म कर सकते हैं कि यह सही है?
एजी वेनुगोपाल ने कहा- हम पुष्टि कर सकते हैं। हमें एक दिन का समय दीजिए … 26 जनवरी को देश में हाई सिक्योरिटी होती है। एक लाख लोगों को राजधानी में प्रवेश करने की अनुमति का कोई सवाल ही नहीं उठता। उन्हें अपने फायदे के लिए न्यायालय की सहायता नहीं लेनी चाहिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे पुलिस पर ही छोड़ दिया जाए। हमें इसका निर्णय लेने का हक नहीं।
हरिश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की कि कोर्ट जब आदेश दे तो उसमे लिख दे एम एस पी जारी रहेगी और किसानों को रामलीला मैदान में प्रदर्शन के लिए रहने दिया जाए। इस पर कोर्ट ने कहा यदि वे आग्रह करें तो विचार किया जाएगा। मगर किसानों को प्रदर्शन के लिए पुलिस से अनुमति लेनी होगी। उच्चतम न्यायालय ने किसान संगठनों से कहा, ’यह राजनीति नहीं है। राजनीति और न्यायतंत्र में फर्क है और आपको सहयोग करना ही होगा।’
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