वाजपेयी की जन्मशती पर उनके चुनिंदा भाषणों के कुछ अंश |

वाजपेयी की जन्मशती पर उनके चुनिंदा भाषणों के कुछ अंश

वाजपेयी की जन्मशती पर उनके चुनिंदा भाषणों के कुछ अंश

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Modified Date: December 24, 2024 / 07:47 PM IST
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Published Date: December 24, 2024 7:47 pm IST

नयी दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा) पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी शानदार भाषण कला के लिए जाने जाते थे। बुधवार को उनकी 100वीं जयंती है।

प्रधानमंत्री के तौर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कद्दावर नेता द्वारा विभिन्न मंचों पर 1998 के परमाणु परीक्षण और कश्मीर से लेकर प्रेस की स्वतंत्रता और शिक्षा तक कई विषयों पर दिए गए भाषणों के कुछ अंश यहां दिए गए हैं :

वाजपेयी पहली बार मई 1996 में 13 दिनों की अवधि के लिए प्रधानमंत्री रहे, फिर 1998-1999 में 13 महीने की अवधि के लिए, तथा उसके बाद 1999 से 2004 तक पूर्ण कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री रहे।

*आप दोस्त बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं। (मई 2003-संसद में)

*इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि अच्छे पड़ोसियों को एक-दूसरे के साथ वास्तव में भाईचारा बनाने से पहले, उन्हें पहले अपने बीच के मतभेदों को दूर करना होगा। (जून 2003 – पेकिंग विश्वविद्यालय में)

*पोखरण-2 परमाणु परीक्षण न तो आत्म-प्रशंसा के लिए किया गया था, न ही किसी ताकत के प्रदर्शन के लिए। लेकिन यह हमारी नीति रही है, और मुझे लगता है कि यह देश की भी नीति है, कि न्यूनतम प्रतिरोध क्षमता होनी चाहिए, जो विश्वसनीय भी होनी चाहिए। इसीलिए हमने परीक्षण करने का फैसला लिया। (1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद संसद में)

*यदि मैं सत्ता में आने के लिए पार्टी तोड़कर नए गठबंधन बनाऊं, तो मैं उस सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा। ( मई 1996 में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव का जवाब देते हुए)

*आपसी संदेह और छोटी-मोटी प्रतिद्वंद्विताएं हमें परेशान करती रही हैं। परिणामस्वरूप, शांति का लाभ हमारे क्षेत्र से दूर रह गया है। इतिहास हमें याद दिला सकता है, हमारा मार्गदर्शन कर सकता है, हमें सिखा सकता है या हमें आगाह कर सकता है; इसे हमें बंधन में नहीं डालना चाहिए। हमें अब सामूहिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए आगे की ओर देखना होगा। (जनवरी 2004-इस्लामाबाद में 12वें दक्षेस शिखर सम्मेलन में)

*हम भारत में एक महान सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं जिसका जीवन मंत्र शांति और भाईचारा है। भारत अपने लंबे इतिहास में कभी भी एक आक्रामक राष्ट्र, उपनिवेशवादी या आधिपत्यवादी नहीं रहा है। आधुनिक समय में, हम अपने क्षेत्र और दुनिया भर में शांति, मित्रता और सहयोग में योगदान देने की अपनी जिम्मेदारी के प्रति सजग हैं। (जनवरी 2004-शांति और अहिंसा पर वैश्विक सम्मेलन के उद्घाटन पर)

*गरीबी बहुआयामी है। यह आय से आगे बढ़कर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कौशल वृद्धि, स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर तक सभी स्तरों पर राजनीतिक भागीदारी, प्राकृतिक संसाधनों, स्वच्छ जल और वायु तक पहुंच और अपनी संस्कृति और सामाजिक संगठन की उन्नति तक फैली हुई है। (सितंबर 2003 – संयुक्त राष्ट्र महासभा के 58वें सत्र में)

*प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय लोकतंत्र का अभिन्न अंग है। इसे संविधान द्वारा संरक्षित किया गया है। हमारी लोकतांत्रिक संस्कृति द्वारा इसे और भी अधिक मौलिक तरीके से संरक्षित किया गया है। यह राष्ट्रीय संस्कृति न केवल विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करती है, बल्कि इसने दुनिया में कहीं भी बेजोड़ दृष्टिकोणों की विविधता को बढ़ावा दिया है। (सितंबर 2003 – ‘द हिंदू’ की 125वीं वर्षगांठ पर)

*किसी के विश्वास के कारण उत्पीड़न और इस बात पर जोर देना कि सभी को एक विशेष दृष्टिकोण को स्वीकार करना चाहिए, हमारे लोकाचार के लिए अज्ञात है। (सितंबर 2003-‘द हिंदू’ की 125वीं वर्षगांठ पर)

*बंदूक किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकती; भाईचारा ही कर सकता है। अगर हम तीन सिद्धांतों इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के मार्गदर्शन में आगे बढ़ें तो समस्याओं का समाधान हो सकता है। (अप्रैल 2003 – संसद में जम्मू-कश्मीर पर)

*शिक्षा, शब्द के सही अर्थ में, आत्म-खोज की एक प्रक्रिया है। यह स्वयं को गढ़ने की कला है। यह व्यक्ति को किसी विशेष कौशल या ज्ञान की किसी विशेष शाखा में प्रशिक्षित नहीं करती, बल्कि उसकी छिपी हुई बौद्धिक, कलात्मक और मानवतावादी क्षमताओं को विकसित करने में प्रशिक्षित करती है। शिक्षा की परीक्षा यह है कि क्या यह सीखने और सीखने की इच्छा पैदा करती है, न कि किसी विशेष जानकारी के समूह में। (दिसंबर 2002-विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के स्वर्ण जयंती समारोह का उद्घाटन भाषण)

भाषा आशीष धीरज

धीरज

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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