(कुणाल दत्त)
(तस्वीरों के साथ)
अयोध्या, 31 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय के 2019 में दिये एक एक ऐतिहासिक फैसले के बाद अयोध्या में बहुत कुछ बदल गया है लेकिन ‘कारसेवकपुरम’ अब भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
अयोध्या की मूल निवासी आरती इस पवित्र शहर में 30 से अधिक वर्ष से कारसेवकपुरम में संचालित एक कार्यशाला में अलंकृत नक्काशीदार पत्थरों की सफाई और पॉलिश के काम में लगी हैं।
आरती ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ये पत्थर अयोध्या में बन रहे राम मंदिर निर्माण स्थल पर भेजे जाएंगे। हमें अच्छा लग रहा है कि हम इसमें योगदान दे रहे हैं।’’
वह उन महिलाओं के समूह में शामिल हैं जो अयोध्या के कारसेवकपुरम में राम जन्मभूमि न्यास द्वारा संचालित ‘कार्यशाला’ में प्रतिदिन सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक काम करती हैं। इस दौरान एक घंटे का दोपहर में भोजनावकाश होता है।
आरती और कुछ अन्य महिला श्रमिकों ने हालांकि काम के आधिकारिक घंटे समाप्त होने के बाद भी ‘अतिरिक्त 10 मिनट’ काम किया।
आरती ने कहा, ‘‘यह (अतिरिक्त समय) भगवान जी के लिए है।’’
एक लोहे के ब्लेड से, आरती नक्काशीदार पत्थर की सतह पर जमे काले निशानों को धैर्यपूर्वक इंच-दर-इंच हटाती हैं। यह एक कठिन कार्य है जो उनकी शारीरिक शक्ति और धैर्य दोनों की परीक्षा लेता है।
इस काम के लिए कार्यरत एक अन्य कर्मचारी रीता देवी ने कहा, ‘‘हमारी कलाई में दर्द होता है, लेकिन हम बीच-बीच में थोड़ी देर के लिए अपने हाथों को आराम दे देते हैं।
इस काम के लिए उन्हें प्रति माह 12,000 रुपये मिलते हैं।
उच्चतम न्यायालय ने 2019 में सर्वसम्मति के फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करते हुये केन्द्र को निर्देश दिया था कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिये किसी वैकल्पिक लेकिन प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया जाये।
इस फैसले के बाद से अयोध्या में बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन कारसेवकपुरम अयोध्या का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन होगा और देश के विभिन्न हिस्सों से भक्त और अन्य आगंतुक रामलला के दर्शन के लिए और निर्माणाधीन मंदिर की एक झलक पाने के लिए आ रहे हैं।
इनमें से कई लोग कारसेवकपुरम में आयोजित इस कार्यशाला में भी आते हैं। इनमें से कुछ केवल श्रद्धा के कारण, तो कुछ जिज्ञासा के कारण यहां आते हैं। स्थानीय गाइड आगंतुकों को विशाल ‘कार्यशाला’ में भी लाते हैं, जिसमें ‘राम मंदिर’ का एक लकड़ी का मॉडल भी है।
कार्यशाला के प्रभारी अन्नू भाई सोमपुरा ने रविवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘हालांकि नक्काशीदार पत्थरों के कई खंडों को ‘पॉलिश करने के बाद निर्माण स्थल पर भेज दिया गया है’, लेकिन ‘कार्यशाला’ अभी भी देश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करती है।’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘इस स्थान, पत्थरों, प्रदर्शित वस्तुओं को देखने के लिए अभी भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं और पहली बार आने वाले लोग कार्यशाला के महत्व के बारे में जिज्ञासापूर्वक पूछताछ करते हैं।’’
सोमपुरा ने कहा कि पत्थरों को ‘पॉलिश’ करने वाली महिलाओं का समूह अयोध्या से है, जबकि पुरुष श्रमिक, जो पॉलिश करते हैं, राजस्थान से आए हैं।
कारीगर सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक काम करते हैं, और केवल अमावस्या के दिन काम बंद रहता है।
राम जन्मभूमि न्यास को विश्व हिंदू परिषद का समर्थन प्राप्त है।
सोमपुरा ने दावा किया कि इनमें से कुछ पत्थरों का उपयोग श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र द्वारा बनाए जा रहे मुख्य मंदिर में किया जाएगा। ट्रस्ट की ओर से हालांकि अभी तक इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने 26 दिसंबर को यहां संवाददाताओं से कहा था कि पारंपरिक नागर शैली में निर्मित मंदिर परिसर 380 फुट लंबा (पूर्व-पश्चिम दिशा), 250 फुट चौड़ा और 161 फुट ऊंचा होगा। उन्होंने बताया था कि मंदिर की प्रत्येक मंजिल 20 फुट ऊंची होगी और इसमें कुल 392 खंभे और 44 द्वार होंगे।
भाषा
देवेंद्र नरेश
नरेश
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