नयी दिल्ली, 27 जनवरी (भाषा) पश्चिम बंगाल में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए पूरी चयन प्रक्रिया कदाचार के कारण दूषित थी और राज्य अवैध नियुक्तियों को “संरक्षित” करना चाहता था। उच्चतम न्यायालय में सोमवार को यह दलील दी गयी।
पिछले साल 22 अप्रैल को कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ के समक्ष यह तर्क दिया गया।
उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को अमान्य करार दिया था।
पिछले साल सात मई को शीर्ष अदालत ने राज्य के स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) द्वारा की गई नियुक्तियों पर उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत ने हालांकि, सीबीआई को मामले में अपनी जांच जारी रखने की अनुमति दी।
सोमवार को शीर्ष अदालत ने उन वकीलों की दलीलें भी सुनीं, जिन्होंने चयन प्रक्रिया के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
उनमें से एक ने कहा, “पूरी चयन प्रक्रिया कदाचार के कारण दूषित हो गई थी, और राज्य सरकार अवैध नियुक्तियों को बचाना चाहती थी।”
वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि राज्य का एसएससी बेदाग और दागी उम्मीदवारों में अंतर करने में असमर्थ था। एक वकील ने दावा किया कि इस प्रक्रिया में “बड़ी संस्थागत आपराधिक साजिश” थी, जबकि दूसरे वकील ने कहा कि एसएससी और राज्य को दागी उम्मीदवारों की संख्या के बारे में एक निश्चित रुख पर आना चाहिए।
बहस अनिर्णीत रही और 10 फरवरी को जारी रहेगी। 15 जनवरी को, उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाले कई याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इसने बेदाग उम्मीदवारों के जीवन और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
एक आम तर्क यह था कि उच्च न्यायालय के आदेश से प्रतिकूल रूप से प्रभावित अधिकांश बेदाग चयनित उम्मीदवार किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में बैठने के लिए स्वीकार्य आयु सीमा पार कर चुके थे, क्योंकि कथित भर्ती प्रक्रिया 2016 की थी।
यह मामला पश्चिम बंगाल एसएससी द्वारा आयोजित 2016 की भर्ती प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं से उपजा था। यह विवाद 2016 की राज्य स्तरीय चयन परीक्षा में कथित भ्रष्टाचार से जुड़ा है।
कुल 24,640 पदों के लिए 23 लाख उम्मीदवारों ने परीक्षा दी और कुल 25,753 नियुक्ति पत्र जारी किए गए।
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ओएमआर शीट से छेड़छाड़ और ‘रैंक-जंपिंग’ जैसी अनियमितताओं का हवाला देते हुए अप्रैल 2024 में नियुक्तियों को अमान्य कर दिया। पिछले साल 7 मई को, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार सीबीआई की जांच जारी रहेगी, लेकिन कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने हालांकि, यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य के जिन शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियां उच्च न्यायालय द्वारा रद्द की गई थीं, यदि उनकी भर्ती अवैध पाई गई तो उन्हें वेतन और अन्य भत्ते वापस करने होंगे।
शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल में कथित भर्ती घोटाले को “व्यवस्थागत धोखाधड़ी” करार दिया और कहा कि राज्य के अधिकारी 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित डिजिटल रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए बाध्य हैं।
भाषा वैभव प्रशांत
प्रशांत
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)