Emergency in India | 49 years of emergency completed

Emergency in India: आपातकाल के 49 साल पूरे.. 60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी और हजारों नेता जेल में, पढ़े कैसा रहा दमन का वो दौर..

इमरजेंसी को भारतीय राजनीति का काला अध्याय कहा जाता है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने विभिन्न राजनीतिक विरोधियों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था।

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Modified Date: June 25, 2024 / 10:45 AM IST
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Published Date: June 25, 2024 10:41 am IST

नई दिल्ली: 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसला लिया, जिसमें इंदिरा गांधी के रायबरेली से सांसद के रूप में चुनाव को अवैध घोषित कर दिया गया। 1971 के आम चुनावों में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से उनके प्रतिद्वंद्वी राज नारायण ने उन पर चुनावों में हेरफेर करने के लिए सरकारी मशीनरी का उपयोग करने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया। (Emergency in India) दोषी पाए जाने पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया और अगले छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नागरिक स्वतंत्रता पर नकेल कसने के प्रयास में 21 महीने का आपातकाल लगाया था। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 352 राष्ट्रपति को देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा होने पर आपातकाल घोषित करने की शक्ति देता है, चाहे वह युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से हो।

इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को देर रात ऑल इंडिया रेडियो पर एक प्रसारण में आपातकाल लगाने की घोषणा की, जिसके तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर सशर्त रोक लगा दी, जिससे लोकसभा के लिए उनका चुनाव रद्द घोषित कर दिया गया। अदालत ने इंदिरा गांधी को संसदीय कार्यवाही से दूर रहने को कहा। इस दौरान इंदिरा गांधी ने कहा कि ”राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की है, घबराने की कोई बात नहीं है।” जिसके बाद विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया।

इमरजेंसी का ऐलान

इमरजेंसी का ऐलान होने के कुछ ही घंटों के अंदर प्रमुख समाचार पत्रों के ऑफिसों की बिजली आपूर्ति काट दी गई और जयप्रकाश नारायण, राज नारायण, मोरारजी देसाई, चरण सिंह, जॉर्ज फर्नांडीस सहित कई विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 का उपयोग करके खुद को असाधारण शक्तियां प्रदान कीं।

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किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमे के हिरासत में रखने की अनुमति देने के लिए एक अध्यादेश के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम (एमआईएसए) में संशोधन किया गया था। भारतीय संविधान का सबसे विवादास्पद 42वां संशोधन पारित हो गया। इससे न्यायपालिका की शक्ति कम हो गई। इस संशोधन ने संविधान की मूल संरचना को बदल दिया।

नसबंदी कराई गई

इमरजेंसी के दौरान नसबंदी सबसे दमनकारी अभियान साबित हुआ। नसबंदी के फैसले को लागू करने की जिम्मेदारी संजय गांधी पर थी। कम समय में खुद को साबित करने के लिए संजय गांधी ने इस फैसले को लेकर काफी सख्त रुख अपनाया। इस दौरान लोगों को घरों में घुसकर, बसों से उतारकर और कई तरह के लालच देकर उनकी नसबंदी कर दी गई थी। (Emergency in India) एक रिपोर्ट के मुताबिक, महज एक साल के भीतर देशभर में 60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी कर दी गई।

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कई बड़े नेता गए थे जेल

इमरजेंसी को भारतीय राजनीति का काला अध्याय कहा जाता है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने विभिन्न राजनीतिक विरोधियों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था। राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान जिन नेताओं को जेल भेजा गया उनमें प्रमुख नेता थे मोरारजी देसाई, चन्द्रशेखर, आचार्य कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेई, लाल कृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह यादव, जॉर्ज फर्नांडिस, चरण सिंह और लालू यादव का नाम शामिल है।

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