नयी दिल्ली, 17 दिसंबर (भाषा) संसद की एक स्थायी समिति ने रेखांकित किया कि अंतरराष्ट्रीय जगत में जारी संघर्ष ने ‘हाइब्रिड युद्ध के खतरों’ को उजागर किया है। समिति ने इसके मद्देनजर सिफारिश की कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) को किसी भी गैर-पारंपरिक युद्ध और सुरक्षा खतरों के खिलाफ त्वरित प्रतिक्रिया के लिए अपने अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) प्रयासों का विस्तार करना चाहिए।
रक्षा मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने मंगलवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में ‘‘इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि 55 परियोजनाओं में से 23 निर्धारित समय के भीतर पूरी नहीं हुईं।’’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘यद्यपि पिछले 10 वर्षों (एक जनवरी 2012 से आज तक) के दौरान 34161.58 करोड़ रुपये की 571 परियोजनाएं सफलतापूर्वक पूरी और बंद की गई हैं, लेकिन आंशिक रूप से सफल या असफल परियोजनाओं की बात करें, तो इस अवधि के दौरान 770.31 करोड़ रुपये की आठ ऐसी परियोजनाएं चरणबद्ध तरीके से बंद कर दी गईं।’
समिति ने अपनी रिपोर्ट में पिछली लोकसभा को सौंपी गई अपनी 42वीं रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें इसने डीआरडीओ को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु जैसे प्रमुख संस्थानों में अपनी अनुसंधान प्रयोगशालाएं स्थापित करने का सुझाव दिया था, ताकि रक्षा और सैन्य प्रौद्योगिकी में रुचि रखने वाले छात्रों को इस क्षेत्र में आगे अनुसंधान करने के लिए प्रेरित किया जा सके।
इस संबंध में, रक्षा मंत्रालय ने प्रस्तुत किया है कि समिति की सिफारिश के जवाब में डीआरडीओ ने शिक्षाविदों और उद्योगों के साथ अनुसंधान जुड़ाव के लिए देश भर के विभिन्न आईआईटी, आईआईएससी और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में विभिन्न डीआरडीओ उद्योग अकादमी-उत्कृष्टता केंद्र (डीआईए-सीओई) की स्थापना की है।
समिति ने अपनी ‘‘मूल रिपोर्ट में डीआरडीओ से अपने अनुसंधान-आधार को आगे बढ़ाने और उनके द्वारा विकसित विभिन्न प्रणालियों और उप-प्रणालियों में एआई के अनुप्रयोग की संभावना का पता लगाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और रोबोटिक्स जैसे प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों के नये और उभरते क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया था।’’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘समिति को लगता है कि अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में जारी संघर्ष ने हाइब्रिड युद्ध के खतरों को काफी हद तक उजागर किया है और युद्ध प्रौद्योगिकी में इस तरह के व्यापक बदलाव को ध्यान में रखते हुए रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान और विकास पर गहन ध्यान देने की आवश्यकता है।’’
समिति ने कहा कि उसे यह समझ में आ गया है कि सशस्त्र बलों के कर्मियों को केवल ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों पर निर्भर रहने के कारण सुदूर और दूर-दराज के सीमावर्ती क्षेत्रों में ‘कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘समिति का मानना है कि डीआरडीओ को सुदूरवर्ती क्षेत्रों में नये और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (सौर और पवन) के दोहन के लिए रास्ते तलाशने चाहिए, ताकि सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात सशस्त्र बलों के कर्मियों को उनकी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। समिति इस संबंध में किए गए उपायों के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहेगी।’
एक अन्य रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि उसे ज्ञात है कि समकालीन युद्ध क्षेत्र में सामरिक रणनीति में एक ‘आमूलचूल परिवर्तन’ हो रहा है। इसके तहत समिति ने सिफारिश की है कि रक्षा मंत्रालय, रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और अन्य हितधारकों को हाइब्रिड और आधुनिक युद्ध रणनीति में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए ‘तत्काल और समन्वित प्रयास’ करने चाहिए।
भाषा सुरेश पारुल
पारुल
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