नई दिल्ली: देशभर में लोकसभा चुनावा अपने आखिरी दौर पर हैं। अगले महीने की पहली तारीख को लोकसभा चुनाव के सातवें और आखिरी चरण का मतदान होगा जबकि इसके ठीक तीन दिन बाद यानी चार जून को नतीजे घोषित कर दिए जायेंगे।
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इस बार के लोकसभा में भी हर बार की तरह कई वरिष्ठ और दिग्गज नेता मैदान में हैं तो वही कई बड़े नेताओं को पार्टियों ने टिकट भी नहीं दिया। बात करें पिछले चुनाव की तो तब के नतीजे चौंकाने वाले थे। कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गाँधी को अपनी सीट अमेठी से भाजपा के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। इसी तरह दूसरी पार्टियों के नेताओं को भी उस चुनाव में शिकस्त मिली थी। लेकिन यह पहला चुनाव नहीं है जब किसी बड़े चेहरे को हार का सामान करना पड़ा था।
बात करें देश के पहले चुनाव की तो वह आजादी से 4 साल बाद 1951 में लड़ा गया था। 489 संसदीय सीटों पर हुए इस चुनाव में नेशलन कांग्रेस पार्टी ने 364 सीटों जीत दर्ज की थी। 1951 में कांग्रेस पार्टी की इस जीत के दो पहलू थे। पहला यह कि देश के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत दर्ज की. वहीं इस जीत का एक दूसरा पहलू भी था। दरअसल, यह वह दौर था जब देश को आजादी मिले कुछ साल ही गुजरे थे।
कांग्रेस को चुनौती देने के लिए 52 राजनैतिक दलों के 1396 उम्मीदवार सामने खड़े थे। इस चुनाव में कांग्रेस के 479 प्रत्याशियों में से 364 को जीत मिली, जबकि 125 प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा।
बात करें देश के पहले कानून मंत्री और संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर की तो उन्होंने भी इस चुनाव में किस्मत आजमाया था। वह कांग्रेस के बजाये ऑल इण्डिया शेड्युअल कास्ट फेडरेशन की टिकट पर उत्तर-पश्चिम बंबई (वर्तमान में मुंबई) से लड़ा था। हालाँकि वह यह चुनाव नहीं जीत पाएं। वह चौथे स्थान पर रहे थे। उन्हें 1 लाख 23 हजार 576 वोट हासिल हुए थे। इस सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार विट्ठल बालकृष्ण गाँधी को सबसे ज्यादा 1 लाख 49 हजार 138 जबकि नारायण एस काजरोलकर को 1 लाख 38 हजार 137 मत प्राप्त हुए थे।
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