रानी लक्ष्मीबाई ‘राष्ट्रीय गौरव’, ‘सांप्रदायिक राजनीति’ के लिए इतिहास को न बांटें: उच्च न्यायालय |

रानी लक्ष्मीबाई ‘राष्ट्रीय गौरव’, ‘सांप्रदायिक राजनीति’ के लिए इतिहास को न बांटें: उच्च न्यायालय

रानी लक्ष्मीबाई ‘राष्ट्रीय गौरव’, ‘सांप्रदायिक राजनीति’ के लिए इतिहास को न बांटें: उच्च न्यायालय

:   Modified Date:  September 25, 2024 / 06:43 PM IST, Published Date : September 25, 2024/6:43 pm IST

नयी दिल्ली, 25 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शाही ईदगाह प्रबंधन समिति को ‘निंदनीय दलीलें’ देने पर फटकार लगाते हुए बुधवार को कहा कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ‘राष्ट्रीय गौरव’ हैं और इतिहास को ‘सांप्रदायिक राजनीतिक’ आधार पर बांटना नहीं चाहिए।

समिति ने सदर बाजार स्थित शाही ईदगाह पार्क में रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगाने के खिलाफ याचिका दाखिल की है, जिसपर सुनवाई के दौरान अदालत ने यह टिप्पणी की।

उच्च न्यायालय ने कहा कि समिति का इरादा अदालत के माध्यम से सांप्रदायिक राजनीति करना है और मामले को धार्मिक रंग दिया जा रहा है।

मनोनीत मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा, ‘‘इसे धार्मिक रंग दिया जा रहा है। यह गर्व की बात है कि आपके पास यह प्रतिमा है। एक तरफ हम महिला सशक्तीकरण की बात कर रहे हैं… वह सभी धार्मिक सीमाओं से परे एक राष्ट्रीय गौरव हैं और आप यह धार्मिक आधार पर कर रहे हैं। इतिहास को सांप्रदायिक राजनीति के आधार पर न बांटें।’’

एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली समिति की अपील पर सुनवाई कर रही खंडपीठ ने यहां सदर बाजार स्थित शाही ईदगाह पार्क में ‘झांसी की रानी’ की प्रतिमा स्थापित करने पर रोक लगाने संबंधी याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि याचिका में कोई कारण नहीं बताया गया है।

अदालत ने अपील में एकल पीठ के न्यायाधीश के खिलाफ लिखे कुछ पैराग्राफ पर आपत्ति जताई और कहा कि वे ‘‘विभाजनकारी’’ हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘कोई व्यक्ति स्पष्ट रूप से अपना आपा खो चुका है। जो व्यक्ति ऐसा कर रहा है, वह पूरी तरह से बहक गया है। सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति भावनात्मक रूप से बहक गया है… याचिकाकर्ता सांप्रदायिक राजनीति में लिप्त है और अदालत को भी इसमें घसीट रहा है। अदालतें सांप्रदायिक राजनीति में शामिल नहीं होती हैं। लिखित माफी मांगिए। आप जो कर रहे हैं, वह उचित नहीं है।’’

अदालत ने कहा, ‘‘एकल पीठ के न्यायाधीश के लिए इस्तेमाल किए गए शब्दों को देखें। कृपया इन दलीलों को वापस लें और हमें माफीनामा दें। यह निंदनीय है। बिल्कुल निंदनीय। अदालत के जरिये सांप्रदायिक राजनीति की जा रही है। अदालत के बाहर सांप्रदायिक राजनीति करें। इस प्रक्रिया में हमारा इस्तेमाल न करें। वह एक राष्ट्रीय गौरव हैं। आप लोग जो कर रहे हैं वह उचित नहीं है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि इसका उद्देश्य अदालत के माध्यम से सांप्रदायिक राजनीति करना है। रानी लक्ष्मीबाई का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। अगर जमीन आपकी थी, तो आपको स्वेच्छा से आगे आना चाहिए था।’’

समिति की ओर से पेश अधिवक्ता ने माफी मांगते हुए कहा कि ऐसी मंशा नहीं थी। उन्होंने साथ ही कहा कि अपील राजनीति से प्रेरित नहीं है। वकील ने कहा कि जमीन प्रबंध समिति की नहीं है और उसे केवल शाही ईदगाह को लेकर चिंता है।

दिल्ली सरकार की ओर से पेश स्थायी अधिवक्ता संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि याचिका में न्यायाधीशों सहित किसी के खिलाफ सख्त बयान देना चलन हो गया है और ‘‘लोग नहीं जानते कि कैसे एकल न्यायाधीश या न्यायाधिकरण को संबोधित किया जाए’’।

अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह उन आपत्तिजनक पैराग्राफ को हटाएं जिनमें अपमानजनक दलीलें दी गई थीं, तथा इस संबंध में बृहस्पतिवार तक आवेदन जमा करें।

अदालत ने इसी के साथ मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को सूचीबद्ध कर दी।

इससे पहले एकल पीठ ने समिति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता शाही ईदगाह (वक्फ) प्रबंध समिति को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा शाही ईदगाह के आसपास के पार्क या खुले मैदान के रखरखाव का विरोध करने और इस प्रकार दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) द्वारा उसके आदेश पर प्रतिमा की स्थापना का विरोध करने का कोई कानूनी या मौलिक अधिकार नहीं है।

समिति ने 1970 में प्रकाशित एक गजट अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि शाही ईदगाह पार्क मुगलकाल के दौरान निर्मित एक प्राचीन संपत्ति है, जिसका उपयोग नमाज अदा करने के लिए किया जा रहा है। यह कहा गया कि इतने बड़े परिसर में एक समय में 50,000 से अधिक लोग नमाज अदा कर सकते हैं।

अदालत ने उच्च न्यायालय की एक पीठ द्वारा पारित आदेश का हवाला दिया और कहा कि निर्णय में यह भी स्पष्ट किया गया कि शाही ईदगाह के आसपास के पार्क या खुले मैदान डीडीए की संपत्ति हैं और इनका रखरखाव डीडीए के बागवानी प्रभाग-दो द्वारा किया जाता है।

अदालत ने कहा, ‘‘इसके अलावा, दिल्ली वक्फ बोर्ड (डीडब्ल्यूबी) भी धार्मिक गतिविधियों के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए पार्क के उपयोग को अधिकृत नहीं करता है। मूल बात यह है कि, चूंकि शाही ईदगाह से सटे और ईदगाह की दीवारों के भीतर स्थित पार्क/खुला मैदान डीडीए की संपत्ति है, इसलिए यह पूरी तरह से डीडीए की जिम्मेदारी है कि वह जैसा उचित समझे उक्त भूमि के कुछ हिस्सों को सार्वजनिक उपयोग के लिए आवंटित करे। ’’

भाषा धीरज सुरेश

सुरेश

 

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