भारत में कोविड के दीर्घकालिक प्रभावों से पीड़ित मरीजों का इलाज चिकित्सकों के लिये चुनौती |

भारत में कोविड के दीर्घकालिक प्रभावों से पीड़ित मरीजों का इलाज चिकित्सकों के लिये चुनौती

भारत में कोविड के दीर्घकालिक प्रभावों से पीड़ित मरीजों का इलाज चिकित्सकों के लिये चुनौती

:   Modified Date:  October 27, 2024 / 12:11 PM IST, Published Date : October 27, 2024/12:11 pm IST

(कृष्णा)

नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर (भाषा) भारत में चिकित्सक सीमित दिशा निर्देशों के कारण कोविड-19 के दीर्घकालिक प्रभावों से पीड़ित मरीजों के अस्पष्ट और लगातार बरकरार लक्षणों का पता लगाने तथा उनका इलाज करने के लिए जूझ रहे हैं और शोधकर्ताओं ने इस स्थिति पर अपर्याप्त अध्ययन की ओर इशारा किया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पिछले साल मई में वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल के रूप में कोविड-19 के खत्म होने की घोषणा की थी लेकिन लोगों के लंबे समय तक कोविड के प्रभावों से पीड़ित रहने के बोझ का आकलन करने के लिए दुनियाभर में प्रयास किए जा रहे हैं।

लंबे समय तक कोविड के लक्षण बरकरार रहने के कारण शरीर के विभिन्न अंगों पर असर पड़ता है और इन लक्षणों में खांसी, मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द, थकान, मतिभ्रम और ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल शामिल हैं। यह संक्रामक रोग सार्स-सीओवी-2 वायरस के कारण होता है।

अध्ययनों से पता चलता है कि कोविड-19 से मध्यम या गंभीर रूप से संक्रमित करीब एक तिहाई लोगों के लंबे समय तक इस संक्रमण के प्रभाव से पीड़ित रहने की आशंका होती है।

अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ता समेत अन्य शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में अनुमान जताया गया है कि उत्तर अमेरिका में एक बार कोरोना वायरस से संक्रमित रहे 31 प्रतिशत, यूरोप में 44 प्रतिशत और एशिया में 51 प्रतिशत लोगों में लंबे समय तक कोविड का प्रभाव रहा जो ‘‘स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को चुनौती दे रहा है लेकिन इसके उपचार के लिए सीमित दिशा निर्देश हैं।’’

बहरहाल, भारत में कोविड के दीर्घकालिक प्रभाव पर अध्ययन बहुत कम रहे हैं।

नयी दिल्ली में मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज द्वारा मई 2022 से मार्च 2023 तक 553 मरीजों पर किए एक ऐसे ही अध्ययन में पाया गया है कि करीब 45 प्रतिशत मरीजों में लंबे समय तक रहने वाले लक्षण थे जिनमें थकान और सूखी खांसी सबसे आम लक्षण थे।

नयी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मनोरोग के प्रोफेसर डॉ. राजेश सागर ने कहा, ‘‘भारत में कोविड के दीर्घकालिक प्रभावों के अध्ययनों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, यह कहना जल्दबाजी होगी कि हम इस स्थिति को इतनी अच्छी तरह समझते हैं कि इसका निदान या उपचार कैसे किया जाए।’’

चिकित्सकों ने भी बताया है कि ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है जिन्होंने उन लक्षणों की शिकायत की है जो उन्हें कोविड से पहले नहीं थे।

भाषा

गोला प्रशांत

प्रशांत

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)