द्रमुक सदस्य ने रास में की आपदा प्रबंधन के लिए अलग मंत्रालय बनाने की मांग |

द्रमुक सदस्य ने रास में की आपदा प्रबंधन के लिए अलग मंत्रालय बनाने की मांग

द्रमुक सदस्य ने रास में की आपदा प्रबंधन के लिए अलग मंत्रालय बनाने की मांग

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Modified Date: March 25, 2025 / 04:20 PM IST
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Published Date: March 25, 2025 4:20 pm IST

नयी दिल्ली, 25 मार्च (भाषा) जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की वजह से देश में, खास कर तटीय राज्यों में प्राकृतिक आपदाएं जाने का जिक्र करते हुए राज्यसभा में मंगलवार को द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के आर गिरिराजन ने ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए एक अलग मंत्रालय बनाने तथा मंत्रालय के लिए अलग बजट नियत करने की मांग की।

आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024 में उच्च सदन में हुई चर्चा के दौरान कांग्रेस के नीरज डांगी ने इस विधेयक को आधा-अधूरा बताते हुए कहा कि इसमें राज्यों के अधिकार एक तरह से कमतर करने का प्रयास किया गया है वहीं तृणमूल कांग्रेस के रीताव्रता बनर्जी ने इस संशोधन विधेयक को गृह मामलों की स्थायी संसदीय समिति के पास भेजने की मांग की।

उच्च सदन में गृह मंत्री अमित शाह ने आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024 को चर्चा करने एवं पारित करने के लिए रखा। विधेयक पर चर्चा में हिस्सा ले रहे द्रमुक सदस्य आर गिरिराजन ने कहा कि विधेयक में विभिन्न मुद्दों को उपेक्षित किया गया है।

उन्होंने कहा कि ‘‘इसमें हमारे आपदा प्रबंधन ढांचे को स्पष्ट और मजबूत करने के बजाय केंद्रीकरण पर अधिक ध्यान दिया गया है जबकि आपदा प्रबंधन की स्थिति में विकेंद्रीकरण अधिक जरूरी होता है।’’

उन्होंने कहा कि आपदा राहत को कानूनी अधिकार का रूप दिया जाना चाहिए क्योंकि यह जरूरी है।

द्रमुक सदस्य ने कहा कि विधेयक में आपदा की रोकथाम और आंकड़ों के संग्रह के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। राज्यों के अधिकारों की इस विधेयक में उपेक्षा की गई है और एक तरह से उनकी स्वायत्तता को खत्म करने का प्रयास किया गया है।

गिरिराजन ने कहा कि केंद्र सरकार ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में इस विधेयक में अपेक्षित प्रावधान नहीं किए हैं जबकि अब तो इन दुष्प्रभावों का सामना अक्सर करना होगा।

उन्होंने मांग की कि आपदा प्रबंधन के लिए एक अलग मंत्रालय बनाया जाए जो न केवल आपदा प्रबंधन को देखे बल्कि पुनर्वास भी उसकी प्राथमिकता हो। उन्होंने कहा कि इस मंत्रालय का अलग बजट होना चाहिए।

उन्होंने मांग की सार्वजनिक क्षेत्र की लाभकारी एवं निजी कंपनियों को उनके कुल सीएसआर कोष का तीन फीसदी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कोष में देना अनिवार्य किया जाए।

आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024 पर चर्चा में अपनी बात रख रहे कांग्रेस के नीरज डांगी ने कहा कि यह विधेयक अपूर्ण है क्योंकि इसमें स्थानीय स्तर पर अधिकारियों की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया है।

डांगी ने आरोप लगाया कि केंद्र की मौजूदा सरकार ने आपदा प्रबंधन के लिए अहम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राष्ट्रीय आपदा शमन कोष जैसे निकायों के संचालन की ओर ध्यान नहीं दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि असली आपदाएं तो कुछ और ही हैं।

उन्होंने कहा कि ऐसी ही एक आपदा कोविड महामारी है जिसका प्रबंधन करने में सरकार विफल रही। इस पर सत्ता पक्ष के सदस्यों के आपत्ति जताने पर डांगी ने कहा कि कोविड 19 जैसी महामारी अगर देश में नहीं आई होती तो शायद इस विधेयक पर अभी चर्चा नहीं होती।

डांगी ने कहा कि कोविड काल में ‘पीएम केयर फंड’ की स्थापना की गई लेकिन इस कोष को आरटीआई के दायरे से क्यों मुक्त रखा गया?

डांगी ने कहा ‘‘विधेयक में डेटाबेस बनाने की बात कही गई है जो केवल दिखावा है। सरकार तो पीएम केयर फंड का विवरण छिपाती है तो वह डेटाबेस केवल बनाएगी।’’

उन्होंने आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर सुझाव देने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का सुझाव दिया।

चर्चा में हिस्सा ले रहे भाजपा के ब्रजलाल ने कहा कि आपदा प्रबंधन की मुख्यत: जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है और केंद्र इसमें नोडल एजेंसी की भूमिका निभाता है।

ब्रजलाल ने कहा कि देश में एनडीआरएफ की 16 बटालियन हैं। प्रत्येक में 1149 जवान होते हैं जिसमें तकनीशियन, डॉक्टर आदि होते हैं ताकि हर तरह की स्थिति से निपटा जा सके।

उन्होंने कहा कि 23 जून 2023 को केंद्र सरकार ने 19 राज्यों को एसडीआरएफ बटालियन के गठन के लिए 6194 करोड़ 40 लाख रुपये का प्रावधान किया और केवल 15 राज्यों ने एसडीआरएफ बटालियन का गठन किया।

ब्रजलाल ने कहा कि एक समय देश में भोपाल गैस त्राासदी हुई थी जिसमें सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, 3000 लोग मारे गए जबकि वहां असलियत में 16000 से अधिक लोग मारे गए थे। उन्होंने कहा ‘‘इस त्रासदी का खामियाजा वहां के लोग आज तक भुगत रहे हैं। तब कांग्रेस की सरकार थी और उसे आपदा प्रबंधन विधेयक बनाने का ध्यान क्यों नहीं आया? इस त्रासदी के मुख्य षड्यंत्रकारी भाग गए, कुछ लोगों को लंबे मुकदमे के बाद मात्र दो साल की सजा और दो हजार डॉलर का जुर्माने की सजा मिली। ’’

उन्होंने कहा कि दंगे मानव जनित आपदाएं हैं इन्हें कैसे भूला जा सकता है?

ब्रजलाल ने कहा कि आपदा के दौरान ऐसा भी हुआ कि मदद करने के लिए गए सरकारी अधिकारियों को रोका गया और इस विधेयक में ऐसी स्थिति से निपटने के लिए प्रावधान है।

तृणमूल कांग्रेस के रीताब्रता बनर्जी ने कहा कि यह समझ में नहीं जाता कि सरकार विधेयकों को संसदीय समितियों के पास क्यों नहीं भेजती।

उन्होंने कहा कि आपदा के समय आर्थिक सहायता के लिए आपदा की गंभीरता कोई मानक नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि 2019-20 में बुलबुल चक्रवात के दौरान पश्चिम बंगाल बुरी तरह प्रभावित हुआ था और उसने केंद्र से जो मदद मांगी थी उसका उसे मात्र 14 फीसदी ही मिला।

बनर्जी ने कहा कि भाजपा शासित राज्यों को आपदा के समय तत्काल अपेक्षित मदद मिल जाती है लेकिन पश्चिम बंगाल इन राज्यों में से नहीं है। उन्होंने दावा किया कि पश्चिम बंगाल को अन्य आपदाओं के समय भी अपेक्षित सहायता नहीं मिली।

उन्होंने कहा कि यह विधेयक भी ‘संघवाद विरोधी’ है और उनकी पार्टी चाहती है कि इसे गृह मामलों की संसदीय समिति के पास भेजा जाए।

भाषा

मनीषा माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)