नयी दिल्ली, 15 अप्रैल (भाषा) दिल्ली की जेलों में कैदियों की संख्या बहुत अधिक है और उनमें 91 प्रतिशत विचाराधीन हैं। ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (आईजेआर)’ से यह जानकारी सामने आयी है।
टाटा ट्रस्ट की पहल और कई नागरिक संस्थाओं एवं डेटा भागीदारों के सहयोग से तैयार आईजेआर 2025 में चार क्षेत्रों – पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता में राज्यों के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया गया है।
रिपोर्ट से एक चिंताजनक प्रवृत्ति सामने आयी। उसमें कहा गया है कि दिल्ली की 16 जेलों में से तीन में 2020 से 2022 तक लगातार 250 प्रतिशत से अधिक कैदी भरे हुए हैं।
कुल मिलाकर, राजधानी की जेलों में एक दशक से अधिक समय से कैदियों की संख्या उसकी क्षमता से 170 प्रतिशत से अधिक है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘दिल्ली की जेलों में 2012 से कैदियों की संख्या लगातार 170 प्रतिशत से अधिक रही है। 2022 में, इसकी 15 प्रतिशत जेलों में 250 प्रतिशत से अधिक कैदियों की संख्या रही। तीन जेलों में 2020 से कैदियों की संख्या लगातार 250 प्रतिशत से अधिक रही है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्मचारियों की कमी से संकट और बढ़ गया है। दिल्ली में कुल जेल कर्मचारियों की संख्या में 27 प्रतिशत की कमी देखी गयी है, जिसमें सुधार से जुड़े कर्मचारियों के 60 प्रतिशत और अधिकारियों के 34 प्रतिशत पद रिक्त हैं।
यहां की जेलों में चिकित्सा देखभाल की स्थिति भी संकटपूर्ण है, 18,000 कैदियों के लिए केवल 90 डॉक्टर हैं – यानी औसतन 206 कैदियों के लिए एक डॉक्टर है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शत प्रतिशत वीडियो कॉन्फ्रेंस सुविधाओं से लैस होने के बावजूद, कारावास पर अत्यधिक निर्भरता, विशेष रूप से विचाराधीन कैदियों के मामले में, प्रणाली में बाधा उत्पन्न कर रही है।
आईजेआर ने तत्काल आधारभूत सुधारों की मांग की है तथा न्याय प्रदाय को आवश्यक सेवा मानने पर जोर दिया है।
भाषा
राजकुमार अविनाश
अविनाश
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