नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘‘भारतीय फिल्म उद्योग’’ में यौन उत्पीड़न के आरोपों से संबंधित एक जनहित याचिका पर विचार करने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विभु बाखरू और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि पीड़ित पक्ष की ओर से शिकायत नहीं किए जाने की स्थिति में वह अतार्किक जांच का आदेश नहीं दे सकती।
याचिकाकर्ता ने मलयालम फिल्म उद्योग में यौन शोषण के मामलों के संबंध में न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग को ‘‘भारतीय फिल्म उद्योग’’ में भी बुनियादी और मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन की जांच करने का निर्देश देने का अनुरोध किया।
पीठ ने कहा, ‘‘जब कोई शिकायत आएगी तो हम उस पर गौर करेंगे। आपकी याचिका न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट पर आधारित है, जिस पर एक अन्य अदालत विचार कर रही है। हम किसी भी तरह की जांच का निर्देश नहीं देंगे।’’
याचिकाकर्ता अजीश कलाथिल गोपी ने आरोप लगाया कि यौन उत्पीड़न की समस्या ‘‘पूरे फिल्म उद्योग’’ में मौजूद है और उन्होंने इस संबंध में संबंधित अधिकारियों से शिकायत भी की है। उन्होंने पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए समिति की रिपोर्ट को शब्दशः प्रस्तुत करने का भी अनुरोध किया।
हालांकि, अदालत ने कहा कि शिकायत किसी पीड़ित की ओर से ही आनी चाहिए। पीठ ने कहा कि पूरी याचिका बिना किसी आंकड़ों-तथ्यों के केवल अनुमानों पर आधारित है। अदालत ने कहा कि पीड़ित पक्षों द्वारा की गई शिकायतों के बाद गठित न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई शुरू की गई।
अदालत ने कहा, ‘‘याचिका में किसी व्यक्ति विशेष द्वारा यौन उत्पीड़न की कोई शिकायत नहीं की गई है। ऐसी परिस्थितियों में, हम याचिका में किए गए अनुरोधों को स्वीकार करना उचित नहीं समझते।’’
भाषा आशीष अविनाश
अविनाश
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