चंडीगढ़, दो नवंबर (भाषा) पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि मधुमेह से पीड़ित किसी सैनिक को चिकित्सा आधार पर सेवा मुक्त करने के बाद उसे दिव्यांगता पेंशन के लाभ से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता जब तक यह साबित न हो जाए कि उसने सेवा अवधि के दौरान ‘निषिद्ध भोजन’ का सेवन किया और कभी शारीरिक गतिविधियों में शामिल नहीं हुआ जिसके कारण वह इससे (मधुमेह) ग्रस्त हो गया।
न्यायालय ने केंद्र सरकार की ओर से दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) द्वारा पारित आदेशों को रद्द करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। न्यायाधिकरण ने एक पूर्व सैनिक के दिव्यांगता पेंशन अनुदान पाने के दावे को स्वीकार कर लिया था।
एएफटी ने माना था कि आवेदक दिव्यांगता पेंशन का अनुदान पाने का हकदार हैं लेकिन केंद्र ने एएफटी के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
मामले के विवरण के अनुसार पूर्व सैनिक 20 जनवरी, 2003 को सेना में भर्ती हुआ था और उसे 31 अक्टूबर, 2019 को अनुकंपा के आधार पर उसके स्वयं के अनुरोध पर सेवा से मुक्त कर दिया गया था। उसे मधुमेह हो गया था।
सेना की सेवा से मुक्त होते समय, उनकी दिव्यांगता को जीवन भर के लिए 50 प्रतिशत आंका गया था, लेकिन मधुमेह से पीड़ित होने और मधुमेह के बढ़ने का कारण सैन्य सेवा को नहीं माना गया।
तदनुसार, दिव्यांगता पेंशन पाने के प्रतिवादी के दावे को चार नवंबर, 2019 के पत्र द्वारा खारिज कर दिया गया।
केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय में अपनी दलील में कहा कि न केवल उनकी दिव्यांगता आनुवांशिक थी, बल्कि यह एक जीवनशैली संबंधी बीमारी थी जो उन्हें शांतिपूर्ण क्षेत्र में सेवा करते समय हुई थी।
लेकिन उच्च न्यायालय ने कहा कि भर्ती के समय मेडिकल बोर्ड को रोग के बारे में एक नोट लिखना चाहिए था, जिसमें यह भी शामिल होना चाहिए कि क्या यह आनुवांशिक रूप से जुड़ा हुआ है और क्या इसके शुरू होने की संभावना है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। इसी के साथ उच्च न्यायालय ने मधुमेह से पीड़ित पूर्व सैन्यकर्मी के लिए दिव्यांगता पेंशन की अनुमति दे दी।
भाषा रवि कांत रवि कांत संतोष
संतोष
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