नयी दिल्ली, 30 अक्टूबर (भाषा) फ्लैट खरीदारों से कथित तौर पर धोखाधड़ी के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने नए सिरे से जांच का निर्देश देते हुए पूर्व क्रिकेटर तथा भारतीय क्रिकेट टीम के मौजूदा प्रमुख कोच गौतम गंभीर को बरी किए जाने को खारिज कर दिया है।
विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने एक मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि गंभीर के खिलाफ आरोपों पर फैसला करने में दिमाग का उचित इस्तेमाल नहीं होने की बात सामने आती है।
उन्होंने अपने 29 अक्टूबर के आदेश में लिखा, ‘‘आरोपों को देखते हुए गौतम गंभीर की भूमिका की आगे जांच जरूरी लगती है।’’
रियल इस्टेट कंपनी रुद्र बिल्डवैल रियलिटी प्राइवेट लिमिटेड, एच आर इन्फ्रासिटी प्राइवेट लिमिटेड, यू एम आर्किटेक्चर्स एंड कॉन्ट्रैक्टर्स लिमिटेड और इन कंपनियों के संयुक्त उपक्रम के निदेशक तथा ब्रांड अंबेसेडर गंभीर के खिलाफ कथित धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया था।
न्यायाधीश ने कहा कि गंभीर इकलौते आरोपी हैं जिनका ब्रांड एंबेसेडर होने के नाते निवेशकों के साथ सीधा ‘इंटरफेस (जुड़ाव) था और उन्हें बरी कर दिया गया है, लेकिन मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश में उनके रुद्र बिल्डवैल रियलिटी प्राइवेट लिमिटेड को छह करोड़ रुपये देने और कंपनी से 4.85 करोड़ रुपये लेने का कोई उल्लेख नहीं किया गया।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आरोपपत्र में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या रुद्र द्वारा उन्हें वापस अदा की गई रकम में कोई सांठगांठ थी या संबंधित परियोजना में निवेशकों से प्राप्त धन से प्राप्त की गई थी। चूंकि आरोपों का मूल धोखाधड़ी के अपराध से संबंधित है, इसलिए यह आवश्यक था कि आरोपपत्र और आदेश में यह होना चाहिए कि क्या धोखाधड़ी की राशि का कोई हिस्सा गंभीर के हाथ आया था।’’
अदालत ने पाया कि गंभीर ने ब्रांड एंबेसडर के रूप में अपनी भूमिका से परे कंपनी के साथ वित्तीय लेनदेन किया था और वह 29 जून, 2011 और 1 अक्टूबर, 2013 के बीच एक अतिरिक्त निदेशक थे, ‘‘इस तरह, जब परियोजना का विज्ञापन किया गया था तब वह एक पदाधिकारी थे।’’
अदालत ने रेखांकित किया कि ‘‘उन्हें पुनर्भुगतान का बड़ा हिस्सा’’ 1 अक्टूबर, 2013 को अतिरिक्त निदेशक के पद से इस्तीफा देने के बाद प्राप्त हुआ।
भाषा वैभव माधव
माधव
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